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________________ ५०२ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती ...... नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाहस्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशाः ॥२४॥ नाम्नः प्रत्यया नामप्रत्ययाः । सर्वाः प्रकृतयो नामेत्युच्यन्ते स यथानामेति वचनात् । अनेन हेतुभाव उक्तः । सर्वेषु भवेषु सर्वतः । अनेन कालोपादान कृतम् । एकैकस्य हि जीवस्यातिक्रान्ता अनंता भवाः । अागामिनः सङ्घय या असङ्ख्य या अनंता वा भवन्ति । योगविशेषानिमित्तात्कर्मभावेन विपाकी, क्षेत्रविपाकी और भवविपाकी ऐसे चार भेद भी प्रकृतियों में होते हैं-पुद्गलविपाकी प्रकृतियां बासठ हैं-पांच औदारिकादि शरीर, पांच बन्धन, पांच संघात, तीन अंगोपांग, निर्माण स्पर्श की आठ, रस की पांच, गन्ध की दो, वर्ण की पांच, छह संस्थान, छह संहनन, अगुरु लघु, उपघात, परघात, आतप, उद्योत, प्रत्येक शरीर, साधारण शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ और अशुभ । जीव विपाकी कर्म प्रकृतियां अठत्तर हैं-घातिया कर्मों की संपूर्ण प्रकृतियां सैंतालीस, वेदनीय की दो, गोत्र की दो, नामकर्म की सत्तावीस हैं-चार गति, पांच जाति, प्रशस्त और अप्रशस्त के भेद से दो विहायोगति, त्रस, स्थावर, पर्याप्त, अपर्याप्त, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, अयशस्कीर्ति, यशकीर्ति, तीर्थंकर, उच्छ्वास, बादर और सूक्ष्म । क्षेत्रविपाकी कर्म प्रकृति चार आनुपूर्वी हैं । भव विपाकी चार आयु हैं। अब प्रदेश बन्ध कथन करने योग्य है, उसके कथन में ये विषय कहते हैं कि प्रदेश का हेतु क्या है, प्रदेश बन्ध कब होता है, किस कारण से होता है और किस स्वभाव वाला है, किसमें तथा कितने प्रमाण में है । इन प्रश्नों का क्रम लेकर उत्तर स्वरूप सूत्र का अवतार होता है सूत्रार्थ-कर्म प्रकृतियों के कारणभूत, प्रतिसमय योगविशेष से सूक्ष्म एक क्षेत्रावगाही और स्थित अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु सब आत्म प्रदेशों में सम्बन्ध को प्राप्त होते हैं, यह प्रदेश बन्ध है। '' 'नाम प्रत्ययाः' पद में तत्पुरुष समास है। ‘स यथानाम' इस सूत्र के अनुसार सभी प्रकृतियां नाम कहलाती हैं । इस पद से हेतुभाव कहा । 'सर्वेषु भवेषु इति सर्वतः' सभी भवों में प्रदेश बन्ध होता है इससे प्रदेश बन्ध का काल बताया। एक एक जीवके अतीत भव अनन्त हैं, आगामी भव किसी के संख्यात, किसी के असंख्यात और किसी के
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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