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अष्टमोऽध्यायः
[ ४९५ जघन्यस्थितिप्रतिपत्त्यर्थं सूत्रद्वयमुपक्रम्यते लघ्वर्थम्
अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य ॥ १८ ॥ सूक्ष्मसाम्पराय इति वाक्यशेषः । अथानुपूर्व्यविशेषात्यये सति मोहायुर्व्यवहितयोरन्ययोः का जघन्या स्थितिरित्युच्यते
नामगोत्रयोरष्टौ ॥ १६॥ अत्रापि सूक्ष्मसाम्पराय इति वाक्यशेषः । मुहूर्ता इत्यनुवर्तते । अपरा स्थितिरिति च । ततो द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य नामगोत्रयोरष्टौ मुहूर्ता जघन्या स्थितिः सूक्ष्मसाम्पराये वेदितव्या । अथान्यासां पूर्वमवस्थापितपञ्चकर्मप्रकृतीनां का जघन्या स्थितिरित्याह
पृथक् रखकर क्रम का उल्लंघन करके तीन कर्मों की जघन्य स्थिति का प्रतिपादन थोड़े में दो सूत्रों द्वारा करते हैं
सूत्रार्थ-वेदनीय कर्मकी जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है, 'सूक्ष्म सांपराय में' इस प्रकार शेष वाक्य है, अर्थात् वेदनीय कर्म (साता वेदनीय की) का जघन्य स्थिति बंध सूक्ष्मसाम्पराय नामके दसवें गुणस्थान में होता है ।
प्रश्न-कर्मों की आनुपूर्वी क्रम का उल्लंघन हुआ है अतः मोहनीय और आयु के व्यवधान के अनन्तर जो अन्य दो कर्म हैं उनकी जघन्य स्थिति कौनसी है सो बताओ?
उत्तर-इसी को सूत्र द्वारा बताते हैं
सूत्रार्थ-नाम और गोत्र की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त है। यहां पर भी सूक्ष्मसाम्पराय वाक्य शेष है । मुहूर्त शब्द का अनुवर्तन तथा अपरास्थिति का अनुवर्तन करना, उससे यह ज्ञात होता है कि बारह मुहूर्त वेदनीय की और नाम गोत्र की आठ मुहूर्त जघन्य स्थिति सूक्ष्म सांपराय गुणस्थान में होती है।
प्रश्न-पहले अवस्थापित की गयी पांच कर्म प्रकृतियों की जघन्य स्थिति कौनसी है ?
उत्तर-अब उन्हीं को बतलाते हैं