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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती
शेषाणामन्तर्मुहूर्ता ॥ २० ॥ अन्तर्गतो मुहूर्तो यस्याः सा अन्तर्मुहूर्ता अपरा स्थितिरवशिष्टानां ज्ञानावरणादीनामवगन्तव्या। तत्र ज्ञानदर्शनावरणान्तरायाणां सूक्ष्मसाम्पराये मोहनीयस्यानिवृत्तिबादरसाम्पराये आयुष. संखययवर्षायुष्षु तिर्यक्षु मनुष्येषु च जघन्या स्थितियथासम्भवं व्याख्येया। आहोभयी ज्ञानावरणादीनामभिहिता स्थितिः । अथाऽनुभव: किंलक्षणो भवतीत्याह
विपाकोऽनुभवः ।। २१॥ ज्ञानावरणादीनां कर्मप्रकृतीनामनुग्रहोपघातात्मिकानां पूर्वास्रवतीव्रमन्दभावनिमित्तो विशिष्टः पाको विपाकः । अथवा द्रव्यक्षेत्रकालभवभावलक्षणनिमित्तभेदजनितवैश्वरूप्यो नानाविधः पाको विपाकः । स एवानुभवोऽनुभाग इति च व्याख्यायते। तत्र शुभपरिणामानां प्रकर्षभावाच्छुभप्रकृतीनामनुभवः प्रकृष्टो भवत्यशुभप्रकृतीनां तु निकृष्टः । अशुभपरिणामानां प्रकर्षभावादशुभप्रकृतीनां
सूत्रार्थ- शेष कर्मों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । मुहर्त के अंतर्गत जो हो उसे अन्तर्मुहूर्त कहते हैं, अवशिष्ट ज्ञानावरण आदि की जघन्य स्थिति अन्तमहतप्रमाण होती है। उनमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय की जघन्य स्थिति सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में बंधती है । मोहनीय की अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में बंधती है । आयु की जघन्य स्थिति संख्यात वर्षायुष्क मनुष्य और तिर्यंचों में बन्धती है । इस तरह यथासम्भव लगाना चाहिए ।
प्रश्न-ज्ञानावरण आदि कर्मों की जघन्य तथा उत्कृष्ट स्थिति को बता दिया । अब यह बताइये कि अनुभव किसे कहते हैं ?
उत्तर- इसी को सूत्र द्वारा बताते हैंसूत्रार्थ-विपाक को अनुभव कहते हैं।
अनग्रह और उपघात करने वाली ज्ञानावरणादि कर्म प्रकृतियों का पहले जो तीव्र मन्द भावों के निमित्त से आस्रव हुआ था उनका विशिष्ट पाक होना विपाक कहलाता है । अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव लक्षण वाले निमित्तों के भेदों से उत्पन्न हुआ विश्वरूप नानाविध पाक है वह विपाक है। उसी के अनुभव और अनुभाग ये नामान्तर हैं। उनमें शुभपरिणामों के प्रकर्ष होने से शुभ प्रकृतियों में प्रकृष्ट अनुभव होता है, और अशुभप्रकृतियों में निकृष्ट (हीन-थोड़ा) अनुभव होता है । तथा अशुभ