________________
४८६ ]
सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ
I
पञ्चेन्द्रियस्य यावुच्छवास निःश्वासौ दीर्घनादो श्रोत्रस्पर्शनेन्द्रियप्रत्यक्षौ तावुच्छवासनामोदयजो बोद्धव्यो । यो तु प्राणापानपर्याप्तिनामोदयकृतौ तौ सर्वसंसारिणां श्रोत्रस्पर्शनानुपलभ्यत्वादतीन्द्रियाविति विज्ञेयौ । यस्योदयात्षडपि पर्याप्तीः पर्यापयितुमात्मा समर्थो न भवति तदपर्याप्तिनाम । यस्योदया दुष्क रोपवासादितपश्चरणेप्यङ्गोपाङ्गानां स्थिरत्वं जायते तत् स्थिरनाम । यस्योदयादीषदुपवासादिकरणे स्वल्पशीतोष्णादिसम्बन्धाद्वाऽङ्गोपांगानि कृशीभवन्ति तदस्थिरनाम । यस्योदयात्प्रभोपेतं शरीरं दृष्टीष्टमुपजायते तदादेयनाम । निष्प्रभं शरीरं यस्योदयादापद्यते तदनादेयनाम । ननु तैजसं नाम सूक्ष्मशरीरमस्ति, तन्निमित्ता शरीरप्रभा भवत्रि । न पुनरादेयकर्मनिमित्तेति चेत्तन्नतेजसस्य सर्वेषां साधारणत्वात्सर्व संसारिजीवशरीरप्रभाविशेषप्रसङ्गात् । तस्मादादेयनामकर्मोदयनिमित्ता प्रभेति युक्तम् ।
दुःख से जो युक्त हैं ऐसे पञ्चेन्द्रिय के दीर्घ नाद वाले, कर्ण तथा स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा जो प्रत्यक्ष होते हैं ऐसे जो उच्छ्वास निःश्वास होते हैं वे तो उच्छ्वास नाम कर्म के उदय से होते हैं, और जो प्राणापान पर्याप्ति नाम कर्म के उदय से होने वाले उच्छ्वास निःश्वास हैं वे सभी संसारी जीवों के होते हैं ये कर्ण तथा स्पर्शन से ज्ञात नहीं होने से अतीन्द्रिय हैं, ऐसा इन दोनों में विशेष है ( उच्छ्वास नाम कर्मका उदय एकेन्द्रिय आदि जीवों के भी होता है) जिसके उदय से छह पर्याप्तियां पूर्ण करने को आत्मा समर्थ नहीं होता वह अपर्याप्ति नाम कर्म है । जिसके उदय से दुष्कर उपवास आदि तपश्चरण करने पर भी अंगोपांग स्थिर रहते हैं वह स्थिर नाम कर्म है । जिसके उदय से अल्प उपवास आदि करने पर अथवा अल्प शीत या उष्ण के सम्बन्ध से अंगोपांगकृश हो जाते हैं वह अस्थिर नाम कर्म है । जिसके उदय से नेत्रको प्रिय ऐसा कान्ति वाला शरीर होता है वह आदेय नाम कर्म है । जिसके उदय से कान्ति रहित शरीर होता है वह अनादेय नाम कर्म है ।
प्रश्न - तैजस नामका सूक्ष्म शरीर है उसके निमित्त से शरीर में प्रभा होती है आय नाम कर्म के कारण प्रभा नहीं होती ?
उत्तर -- ऐसा नहीं कहना, तैजस शरीर सभी के साधारण रूप से पाया जाता है, यदि तेजस शरीर के कारण प्रभा युक्त शरीर होता है ऐसा कहा जाय तो सभी संसारी जीवों के शरीरों की प्रभायें समान होने का प्रसंग आता है, किन्तु समान प्रभा नहीं होती; इसलिये सिद्ध होता है कि शरीर की कान्ति का कारण तेजस शरीर नहीं है ।