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________________ ४८४ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ कर्मजा । ननु च विहायोगतिनामकर्मोदयः पक्ष्यादिष्वेव प्राप्नोति न मनुष्यादिषु विहायसि गत्याभावादिति चेत्तन्न-सर्वेषामवगाहनशक्तियोगाद्विहायस्येव गतिसद्भावात् । शरीरनामकर्मोदयान्निर्वय॑मानं शरीरमेकात्मोपभोगकारणं यतो भवति तत्प्रत्येकशरीरनाम । एकमेकमात्मानं प्रति प्रत्येकंशरीरं प्रत्येकशरीरनाम । बहूनामात्मनामुपभोगहेतुत्वेन साधारणं शरीरं यतो भवति तत्साधारणशरीरनाम । तदुदयवशवतिनो जीवाः कथ्यन्ते-यदैवैकस्य जीवस्याहारशरीरेन्द्रियप्राणापानपर्याप्तिचतुष्टयनिर्वृत्तिर्भवति तदैवानन्तानामाहारादिपर्याप्तिनिर्वृत्तिर्जायते । यदा चैको जायते तदैवानन्ता जायन्ते । यदैवैको म्रियते सदैवानन्तानां मरणं भवति । यदा चैकस्य प्राणापानग्रहणविसर्गस्तदैवानन्ताः प्राणापानग्रहणविसर्ग कुर्वन्ति । यद्येक आहारादिनाऽनुगृह्यते तदैवानन्तास्तेनानुगृह्यन्ते । योकोऽग्निविषादिनोपहन्यते तदैवानन्तानामुपघातो जायत इति । यस्योदयाद्वीन्द्रियादिषु प्राणिषु जङ्गमेषु जन्म लभते तत्त्रसनामोच्यते । एकेन्द्रियेषु पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकायेषु प्रादुर्भावो यन्निमित्तो भवति तत्स्थावरनामकर्मोच्यते । यदु शंका-विहायोगति नाम कर्मका उदय पक्षी आदि में होना चाहिए न कि मनुष्यादि में, क्योंकि उनका विहायस-आकाश में गमन नहीं होता है ? समाधान-ऐसा नहीं है, सभी में अवगाहन शक्ति होने से आकाश में ही गमन होता है अतः उनके विहायोगति नाम कर्म सिद्ध होता है। शरीर नाम कर्म के उदय से रचा हआ जो शरीर है वह एक आत्मा के उपयोग का कारण जिसके निमित्त से बनता है वह प्रत्येक शरीर नाम कर्म है । एक एक आत्मा के प्रति जो होवे वह प्रत्येक है इस तरह प्रत्येक शब्द की निष्पत्ति है । जिसके निमित्त से एक ही शरीर बहुत से जीवों के उपभोग्य बनता है वह साधारण शरीर नाम कर्म है । उस साधारण शरीर नाम कर्म के उदय वाले जीवों का कथन करते हैं-जिस समय एक जीव के आहार, शरीर, इन्द्रिय और प्राणापान ये चार पर्याप्तियां पूर्ण होती हैं उसी समय अनन्त जीवों की आहारादि पर्याप्तियां पूर्ण होती हैं और जिस समय एक जीव उत्पन्न होता है उसी वक्त अनन्त जीव उत्पन्न होते हैं। जिस समय एक जीव मरता है उसी समय अनन्त जीव मरते हैं। जिस समय एक जीव श्वास का ग्रहण और विसर्जन करता है उसी वक्त अनन्त जीव श्वासोंका ग्रहण और विसर्जन करते हैं । यदि एक आहारादि से अनुगृहीत होता है तो उसी वक्त उसी आहारादि से अनन्त जीव अनुगृहीत हो जाते हैं तथा जब एक जीव विष, अग्नि आदि से घाता जाता है उसी वक्त अनन्त जीवों का घात हो जाता है । इस प्रकार साधारण नाम कर्म वाले जीवों की स्थिति होती है। जिसके उदय से द्वीन्द्रियादि जंगम प्राणियों में जन्म होता है वह त्रस नाम कर्म है। पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति कायवाले एकेन्द्रियों में जिसके निमित्त से जन्म होता है
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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