________________
अष्टमोऽध्यायः
[ ४८३
गच्छति सशरोरो जीवस्तदगुरुलघुनामकर्मोच्यते । मुक्तात्मनां तु कर्मकृतागुरुलघुत्वाभावेऽपि स्वाभाविकं तदाविर्भवति । धर्मादीनामजीवानां गुरुलघुत्वमिति चेन्नानादिपारिणामिकाऽगुरुलघुत्वगुणयोगादिति ब्रूमः । यस्योदयात्स्वयं कृतोद्बन्धनमरुत्पतनादिनिमित्त उपघातो भवति तदुपघातनाम । यस्योदयात्फलका दिसन्निधानेऽपि परप्रयुक्तशस्त्राद्याघातो भवति तत्परघातनाम । प्रातपति येनातपनमातपतीति वातपस्तस्य निर्वर्तकं कर्मातपनाम । तदादित्ये वर्तते । उद्योत्यते येनोद्योतनं वा उद्योतस्तन्निमित्तं कर्मो'द्योतनाम । तच्चन्द्रखद्योतादिषु वर्तते । उच्छवसनमुच्छ्वासः प्राणापानकर्म । तद्यद्धेतुकं भवति तदुच्छ्. वासनाम । विहाय श्राकाशं तत्र गतिविहायोगतिस्तस्या निर्वर्तकं कर्म विहायोगतिनाम । तद्विविधं प्रशस्ताप्रशस्तविकल्पात् । वरवृषभगजादिप्रशस्तगतिकारणं प्रशस्त विहायोगतिनाम । उष्ट्रखराद्यप्रशस्त: गतिनिमित्तमप्रशस्त विहायोगतिनाम । सिद्धजीवपुद्गलानां तु या विहायोगतिः सा स्वाभाविकी, न तु
नाम कर्म है । मुक्त जीवों में कर्मकृत अगुरुलघुत्व नहीं है उनके तो स्वाभाविक अगुरुलघुत्व गुण प्रगट होता है ।
प्रश्न- धर्म अधर्म आदि अजीव पदार्थों के अगुरुलघुत्व का कारण कर्मादिक नहीं है अत: उनके गुरुलघुत्व मानना पड़ेगा ?
उत्तर- ऐसी बात नहीं है, धर्मादि द्रव्यों में तो अनादि पारिणामिक अगुरुलघुत्व गुण पाया जाता है उसीसे उनमें अगुरु अलघुपना सिद्ध होता है । जिस कर्मके उदय से • अपने द्वारा किये गये बन्धन, वायु, पर्वत से गिरना इत्यादि निमित्त से स्वयं का घात होता है वह उपघात नाम कर्म है । जिसके उदय से ढाल आदि के रहते हुए भी परके द्वारा किये गये शस्त्रों के आघात हो जाते हैं वह परघात नाम कर्म है । जो तपता है, जिसके द्वारा तपना होता है अथवा तपना मात्र आतप है इस आतप का जो कारण है वह आप नाम कर्म है । इस कर्म का उदय सूर्य के विमान में है । जिसके द्वारा प्रकाशित किया जाता है अथवा प्रकाश मात्रको उद्योत कहते हैं, प्रकाश का जो निमित्त है वह उद्योत नाम कर्म है, इसका उदय चन्द्रविमान, जुगनू आदि में होता है । श्वास को उच्छ्वास कहते हैं जिसके निमित्त से श्वासोच्छ्वास होता है वह उच्छ्वास नाम कर्म है । विहाय आकाश को कहते हैं उसमें जो गति को करता है वह विहायोगति नाम कर्म है उसके दो भेद हैं, प्रशस्त और अप्रशस्त । श्रेष्ठ बैल, हाथी आदि की प्रशस्त गति का (गमन, चाल का ) कारण प्रशस्त विहायोगति नाम कर्म है, और ऊंट, गधा इत्यादि के अप्रशस्त गमन का कारण अप्रशस्त विहायोगति है । सिद्ध जीव और पुद्गल द्रव्यों की जो विहायोगति है वह स्वाभाविक है, कर्मजा नहीं है ।