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________________ अष्टमोऽध्यायः [ ४८१ नाराचसंहनननाम, कीलिकासंहनननाम, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनननाम चेति । तत्र वज्राकारोभयास्थिसन्धि प्रत्येकं मध्ये सवलयबन्धनं सनाराचं सुसंहतं वज्रर्षभनाराचसंहननम् । तदेव वलयबन्धनविरहितं वज्रनाराचसंहननमिति बोद्धव्यम् । तदेवोभयवज्राकारबन्धनव्यपेतमवलयबन्धनं सनाराचं नाराचसंहननमित्यवसेयम् । तदेवैकपार्वे सनाराचमितरत्रानाराचमर्धनाराचसंहननमित्यवगन्तव्यम् । तदुभयमन्ते सकीलं कीलिकासंहननमिति विज्ञेयम् । अन्तरप्राप्तपरस्परास्थिसन्धिकं बहिःसिरास्नायुमांसघटितमसंप्राप्तसृपाटिकासंहननमित्याख्यायते । यस्योदयाच्छरीरे स्पर्शप्रादुर्भावस्तत् स्पर्शनाम। तदष्ट विधंकर्कशनाम, मृदुनाम, गुरुनाम, लघुनाम, स्निग्धनाम, रूक्षनाम, शीतनाम, उष्ण नाम चेति । यन्निमित्तो देहे रसविकल्पस्तद्रसनाम । तत्पञ्चविध-तिक्तनाम, कटुकनाम, कषायनाम, आम्लनाम, मधुरनाम चेति । यस्योदयादंगे गन्धाविर्भावस्तद्गन्धनाम द्विविधं-सुरभिगन्धनाम, असुरभिगन्धनाम चेति । यद्धेतुकोऽङ्ग वर्णविभागस्तवर्णनाम पञ्वविधं-कृष्णवर्णनाम, नीलवर्णनाम, रक्तवर्णनाम, हरिद्रावर्ण नाम, वज्रनाराच संहनन नाम, नाराच संहनन नाम, अर्धनाराच संहनन नाम, कीलकसंहनन नाम और असंप्राप्तसृपाटिका संहनन नाम । दोनों अस्थि सन्धियां वजाकार होना प्रत्येक के मध्य में वलय, बन्धन और नाराच सुसंहत होना जिस कर्म के उदय से होता है वह वजवृषभनाराच संहनन नाम कर्म है । जिस कर्म के उदय से दोनों अस्थियां वजाकार होती हैं किन्तु वलय बन्धन नहीं होते वह वजूनाराच संहनन है। जिसके उदय से दोनों अस्थियां वजाकार नहीं होती, वलय बन्धन भी नहीं होती किन्तु नाराच युक्त (कील सहित) शरीर होता है वह नाराच संहनन है । जिसके उदय से शरीर एक पार्श्व में तो नाराच होता है और एक पार्श्व में नाराच नहीं होता वह अर्धनाराच संहनन है । जिसके उदय से शरीर कील युक्त होता है वह कीलक संहनन है। जिसके उदय से अस्थियां परस्पर में सन्धिरहित होती हैं केवल बाहर से सिरा, स्नायु मांस से घटित होती हैं वह असंप्राप्त सृपाटिका संहनन है । जिसके उदय से शरीर में स्पर्श उत्पन्न होता है वह स्पर्श नाम कर्म है, उसके आठ भेद हैं-कर्कशनाम, मृदुनाम, गुरुनाम, लघुनाम, स्निग्धनाम, रूक्षनाम, शीतनाम और उष्णनाम। जिसके निमित्त से शरीर में रस होता है वह रस नाम कर्म है । उसके पांच भेद हैं-तिक्तनाम, कटुकनाम, कषायनाम, आम्लनाम, मधुरनाम । जिसके उदय से शरीर में गन्ध प्रगट होती है वह गन्ध नाम कर्म है, उसके दो भेद हैं-सुरभिगन्ध, असुरभिगन्ध । जिसके उदय से शरीर में वर्ण होता है वह वर्ण नाम कर्म है, उसके पांच भेद हैं-कृष्णवर्ण नाम, नील वर्ण नाम, रक्त वर्ण नाम, हरिद्रा वर्ण नाम, शुक्ल वर्ण नाम ।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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