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________________ ४८० ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तो दारिकादिशरीराणां पञ्चानां विवरविरहितान्योन्यप्रदेशानुप्रवेशेनैकत्वापादनं भवति तत्संघातनाम पञ्चविधम् । यस्योदयादौदारिकादिशरीराकृतिनिर्वृत्तिर्भवति तत्संस्थाननाम प्रत्येतव्यम् । तत् षोढा प्रविभज्यते-समचतुरश्रसंस्थाननाम, न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननाम, स्वातिसंस्थाननाम, कुब्जसंस्थाननाम, वामनसंस्थाननाम, हुण्डसंस्थाननाम चेति । तत्रोधिोमध्येषु समप्रविभागेन शरीरावयवसन्निवेशव्यवस्थापनं कुशलशिल्पिनिर्वर्तितसमस्थितचक्रवदवस्थानकरं समचतुरश्रसंस्थाननाम । नाभेरुपरिष्टाद्भूयसो देहसन्निवेशस्याधस्ताच्चाल्पीयसो जनकं न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननाम न्यग्रोधाकारसमताप्रापितान्वर्थात् । तद्विपरीतसन्निवेशकरं स्वातिसंस्थाननाम वल्मीकतुल्याकारं । पृष्ठप्रदेशभाविबहुपुद्गलप्रचयविशेषलक्षणस्य निर्वर्तकं कुब्जसंस्थाननाम । सर्वाङ्गोपांगह्रस्वव्यवस्थाविशेषकारणं वामनसंस्थाननाम । सर्वांगोपांगानां हुण्डसंस्थितत्वात् हुण्डसंस्थाननाम । यस्योदयादस्थिबन्धनविशेषो भवति तत्संहननं नाम । तदपि षड्विधं-वज्रर्षभनाराचसंहनननाम, वज्रनाराचसंहनननाम, नाराचसंहनननाम, अर्धशरीर के प्रदेश लकड़ियों के ढेर के समान पृथक-पृथक ही रहते। जिसके उदय से औदारिक आदि पांच शरीरों के प्रदेशों में से अपने अपने शरीर के प्रदेश परस्पर में अन्योन्य प्रवेश स्वरूप तथा छिद्र रहित एकत्व सम्बन्ध को प्राप्त होते हैं वह संघात नाम कर्म है, यह भी पांच प्रकार का है । जिसके उदय से औदारिक आदि शरीरों के आकार की रचना होती है वह संस्थान नाम कर्म है । उसके छह भेद हैं-समचतुरस्र संस्थान नाम, न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान नाम, स्वाति संस्थान नाम, कुब्जक संस्थान नाम, वामन संस्थान नाम और हुण्डक संस्थान नाम । जिसके उदय से ऊपर, नीचे .मध्य में समविभाग से शरीर के अवयवों का सन्निवेश व्यवस्थित होता है, जैसे कि कुशल शिल्पि द्वारा रचित समस्थित चक्र होता है, इस तरह सुन्दर आकार को करने वाला समचतुरस्र संस्थान नाम कर्म है । नाभि के ऊपर के भाग में शरीर का मोटा होना और नाभि के नीचे का भाग छोटा होना जिसके उदय से होता है वह न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान नाम है । न्यग्रोध-वट वृक्ष के समान आकार रूप होने से इसका अन्वर्थ नाम है। उससे विपरीत आकार को करने वाला स्वाति संस्थान नाम है । स्वाति वल्मीक-वामी को कहते हैं जैसे वामी का आकार नीचे मोटा और ऊपर पतला रहता है वैसे जो शरीर रहता है वह स्वाति संस्थान कहलाता है। जिसके उदय से पीठ पर बहुत पुद्गल प्रदेश होते हैं वह कुब्जक संस्थान है । जिससे उदय से सर्व अंगोपांग ह्रस्व-छोटे होते हैं वह वामन संस्थान नाम कर्म है । जिसके उदय से सारे अंगोपांग हुण्ड के समान होते हैं वह हुण्डक संस्थान है। जिसके उदय से अस्थियों का बन्धन विशेष होता है वह संहनन कर्म है, वह भी छह प्रकार का है वजवृषभनाराच संहनन
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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