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अष्टमोऽध्यायः
[ ४७९ ख्यायते । तन्निमित्तं द्रव्यकर्म जातिनाम । तत्पञ्चविधं-एकेन्द्रियजातिनाम, द्वीन्द्रियजातिनाम, त्रीन्द्रियजातिनाम, चतुरिन्द्रियजातिनाम, पञ्चेन्द्रियजातिनाम चेति । यस्योदयादात्मा एकेन्द्रिय इति शब्द्यते तदेकेन्द्रियजातिनाम । एवं शेषेष्वपि योज्यम् । यस्योदयादात्मनः शरीरनिर्वृत्तिर्भवति तच्छरीरनाम । तत्पञ्चविधमौदारिकशरीरनाम, वैक्रियिकशरीरनाम, आहारकशरीरनाम, तैजसशरीरनाम, कार्मणशरीरनाम चेति । तेषां व्युत्पत्त्यादिविशेषो व्याख्यातः । यस्योदयाच्छिरउर:पृष्ठबाहूदरनलकपाणिपादानामष्टानामङ्गानां तभेदानां च ललाटनासिकादीनामुपाङ्गानां विविको भवति तदङ्गोपांगं नाम । तत्त्रिविधमौदारिकशरीरांगोपांगनाम, वैक्रियिकशरीरांगोपांगनाम, आहारकशरीरांगोपांगनाम चेति । अंगोपांगानां यन्निमित्ता परिनिष्पत्तिर्भवतितन्निर्माणं नाम कर्मोच्यते । तद्विविधं-स्थाननिर्माणं प्रमाणनिर्माणं चेति । तज्जातिनामकर्मोदयापेक्षं चक्षुरादीनां स्थानं प्रमाणं च निवर्तयति निर्मीयतेऽनेनेति हि निर्माणम् । शरीरनामकर्मोदयवशादुपात्तानां पुद्गलानामन्योन्यप्रदेशसंश्लेषणं यतो भवति तद्बन्धनं पञ्चविधं विज्ञायते । तस्याभावे शरीरप्रदेशानां दारुनिचयवदसंपर्क: स्यात् । यस्योदयादी
___उन नरकादि गतियों में अध्यभिचारी सादृश्य से एकीकृत स्वरूप जाति है, उसका निमित्त द्रव्यकर्म जाति नाम है । अर्थात् जिसके उदय के निमित्त से जीवों में अविरोधी सादृश्य पाया जाता है वह जाति नामकी प्रकृति है इसके पांच भेद हैं-एकेन्द्रियजाति नाम, द्वीन्द्रियजाति नाम, त्रीन्द्रियजाति नाम, चतुरिन्द्रियजाति नाम और पञ्चेन्द्रियजाति नाम । जिसके उदय से आत्मा एकेन्द्रिय नाम से कहा जाता है वह एकेन्द्रियजाति नाम कर्म है । इसी तरह शेष जातियों में लगाना। जिसके उदय से आत्मा के शरीर रचना होती है वह शरीर नाम कर्म है, वह पांच प्रकार का है-औदारिक शरीर नाम, वैक्रियिक शरीर नाम, आहारक शरीर नाम, तैजस शरीर नाम और कार्मण शरीर नाम । इन शरीरों के व्युत्पत्ति अर्थ पहले कह चुके हैं। जिसके उदय से शिर, उर, पृष्ठ, बाहु, उदर, नलक, हाथ और पैर इन आठ अंगों का तथा इनके प्रभेद स्वरूप ललाट नासिका आदि उपांगों का विवेक होता है वह अंगोपांग नाम कर्म है। उसके तीन प्रकार हैं-औदारिक शरीर अंगोपांग, वैक्रियिक शरीर अंगोपांग और आहारक शरीर अंगोपांग । जिसके निमित्त से अंगोपांगों की निष्पत्ति होती है वह निर्माण नाम कर्म है । वह दो प्रकार का है, स्थाननिर्माण और प्रमाणनिर्माण । उस उस जाति नाम कर्म के उदय की अपेक्षा लेकर तदनुसार चक्षु आदि के स्थान और प्रमाण जिसके द्वारा रचे जाते हैं वह निर्माण कर्म है। शरीर नाम कर्म के उदय से प्राप्त हुए जो पुद्गल हैं उनके प्रदेशों का जिसके उदय से परस्पर में संश्लेष होता है वह बन्धन नाम कर्म है । उसके पांच भेद औदारिक शरीर बन्धन इत्यादि हैं । यदि यह कर्म नहीं होता तो