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________________ ४७६ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ उदयकालं प्रत्यप्युक्त——–कषायवन्नान्तर्मुहूर्तस्थायिनो भाववेदा श्राजन्म श्रामरणादिति । त एते समुदिताः षोडशकषाया भवन्ति । श्राह - व्याख्यातमष्टाविंशत्युत्तरप्रकृतिभेदं मोहनीयम् । अथायुषश्चतुर्विधस्य को नामनिर्देश इत्यत्रोच्यते नारकतैर्यग्योनमानुषदेवानि ॥ १० ॥ नरकादिषु भवसम्बन्धेनायुषो व्यपदेशो भवति । नरकेषु भवं नारकमायुः । तिर्यग्योनिषु भवं तैर्यग्योनम् । मनुष्येषु भवं मानुषम् । देवेषु भवं दैवमिति । नारकं च तैर्यग्योनं च मानुषं च दैवं च नारकतैर्यग्योनमानुषदैवान्यायुषीति सम्बन्धः । यद्भावाभावयोर्जीवितमरणं भवत्यात्मनस्तदायुः प्रधानं कारणं न पुनरन्नादि जीवितमरणस्य निमित्त तस्यायुरुपग्राहकत्वाद्द वनारकेष्वन्नाद्यभावाच्च । तत्र ( उदयकालं प्रत्यप्युक्तं - कषायवत् नान्तर्मुहूर्त्त स्थायिनो भाववेदा - ( भावभेदा) आजन्म आमरणादिति ऐसा संस्कृत टीका का पाठ है जो इस स्थान पर असंगत प्रतीत होता है, यह पाठ वेद के कथन में होना चाहिए था, जो कुछ हो । इस पाठ में 'भाव भेदा' पद अशुद्ध है इस स्थान पर 'भाववेदा' पाठ सुधार कर रखा है । इस पाठांश का अर्थ इस प्रकार है— उदयकाल के प्रति भी कह दिया है, भाव वेदों का उदयकाल क्रोधादि कषायों के उदयकाल के समान अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण नहीं है किन्तु भाव वेदों का उदय तो जन्म से लेकर मरण तक स्थायी रहता है) इस तरह सब कषाय सोलह होती हैं । प्रश्न - अट्ठावीस भेद वाले मोहनीय कर्मका व्याख्यान हो गया । अब चार प्रकार की आयु के कौनसे नाम हैं यह बताओ ? - इसीको सूत्र द्वारा बतलाते हैं उत्तर सूत्रार्थ - नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु ये चार आयुकर्म के भेद हैं । नरकादि में भव के सम्बन्ध से आयु की संज्ञा होती है, नरक में होने वाली आयु नारक है । तिर्यंच योनि में होने वाला तिर्यग्योन कहलाता है, मनुष्य में होने वाला मानुष है और देवों में होने वाला देव कहा जाता है । नारंकादि पदों में द्वन्द्व समास है । आयु शब्द का सम्बन्ध कर लेना चाहिए। जिसके सद्भाव में आत्मा का जीवन और जिसके अभाव में मरण होता है वह आयु कर्म है । अर्थात् जीवन का प्रधान कारण आयु है, अन्नादिका सद्भाव और अभाव जीवन मरण का प्रधान कारण नहीं है । अन्न पानादिक तो उस आयु के अनुग्राहक मात्र होते हैं तथा देव और नारकी के
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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