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अष्टमोऽध्यायः
[ ४७५ कारणत्वान्मिथ्यादर्शनमनन्तम् । तदनुबन्धिनोऽनन्तानुबन्धिनः क्रोधमानमायालोभाः कथ्यन्ते । तेषामुदयकालोऽन्तर्मुहूर्तः। तज्जनितवासनाकालस्तु सङ्घय यासङ्ख घयाऽनन्तभवाः । ईषत्प्रत्याख्यानमप्रत्याख्यानं-देशसंयम इति यावत् । तदावृण्वन्तोऽप्रत्याख्यानावरणाः क्रोधमानमायालोभा उच्यन्ते । तदुदया(शविरतिं स्वल्पामप्यात्मा कर्तुं न शक्नोति । तेषामप्युदयकालोन्तमुहूर्तः। तज्जनितवासनाकालस्तु षण्मासाः। प्रत्याख्यानं स्थूलसूक्ष्मप्राणिघातपरिहरणं-संयम इति यावत् । तत्समस्तमावृण्वन्तः प्रत्याख्यानावरणाः क्रोधमानमायालोभा निरुच्यन्ते । तदुदयादात्मा कृत्स्नां विरति कतुन शक्नोति । तेषामप्युदयकालोऽन्तर्मुहूर्तः। तज्जनितसंस्कारकालः पुनरुत्कर्षेणैकपक्षप्रमाणः। समेकीभावे वर्तते। संयमेन सहावस्थानादेकीभूता ज्वलन्ति दीप्यन्ते संयमो वा ज्वलत्येतेषु सत्स्वपीति संज्वलनाः क्रोधमानमायालोभाः । तेषामुदयकालो भावनाकालश्च जघन्यत उत्कर्षेण चान्तमुहूर्तः । तथा चोक्तम्
अन्तोमुहुत्तपक्खं छम्मासं सङ्खमसङ्खमणन्तभवा। सञ्जलणमादियाणं वासणकालो दुणियमेण ।। इति ॥
अनन्त कहते हैं, उस अनन्त को जो बांधता है वह अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय है । इनका उदयकाल अन्तर्मुहूर्त है (यह अन्तर्मुहूर्त काल क्रोध से मान, मान से माया इत्यादिरूप परिवर्तन की अपेक्षा कहा है, ऐसे तो अनन्तानुबंधी आदि कषायें अपने-अपने गुणस्थानों के काल प्रमाण बहुत समय तक रहती हैं )
उस उदय से उत्पन्न हुआ वासनाकाल तो संख्यातभव असंख्यातभव और अनंतभव है । ईषत प्रत्याख्यान को अप्रत्याख्यान या देश संयम कहते हैं, उसको जो आवृत करे वे अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ हैं । इस कषाय के उदय से आत्मा अल्प भी देश विरति को ग्रहण नहीं कर सकता । इसका उदयकाल भी अन्तर्मुहूर्त है, और उससे उत्पन्न हुआ वासनाकाल छह मासका है । स्थूल और सूक्ष्म जीवों का घात नहीं करना प्रत्याख्यान कहलाता है, उसीको संयम कहते हैं, उस समस्त संयम को जो आवृत करे वे प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ हैं। उस कषाय के उदय से आत्मा पूर्ण विरति को नहीं कर पाता। उनका उदयकाल भी अन्तर्मुहूर्त है और उससे उत्पन्न हुआ संस्कार उत्कर्ष से पंद्रह दिन का है । 'सम्' उपसर्ग एकोभाव अर्थ में है, संयम के साथ एक होकर जलता है अथवा जिनके उदय में संयम दीप्त रहता है वे संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय हैं। उनका उदयकाल और भावनाकाल दोनों ही अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। कहा भी है-संज्वलन आदि कषायोंका वासनाकाल क्रमशः अन्तर्मुहुर्त, पक्ष, छहमास तथा संख्यात, असंख्यात और अनन्त भव प्रमाण है ।। १ ।।