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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती विशेषात् । यस्तु शरीराकारः स नामकर्मनिवर्तितः । एतेन पुनपुंसकवेदी व्याख्यातौ । यस्योदयादात्मा पौंस्कान्भावानास्कन्दति स पुवेदः । यस्योदयान्नापुंसकान्भावानात्मा प्रतिपद्यते स नपुसकवेद इत्याख्यायते । अथ कषायवेदनीयस्य षोडशभेदाः कथ्यन्ते कषायास्तावच्चत्वारः-क्रोधश्च मानश्च माया च लोभश्च क्रोधमानमायालोभा इति । तत्र स्वपरोपघातनिरनुग्रहापादितक्रौर्यपरिणामोऽमर्षः क्रोधः । स चतु:-प्रकार:-पर्वतपृथिवीवालुकोदकराजितुल्यत्वात् । जात्याद्युत्सेकावष्टम्भात्पराऽप्रणतिरूपो मानः । सोऽपि शैलस्तम्भास्थिदारुलतासमानत्वाच्चतुर्विधः । परातिसन्धानायोपहितकौटिल्यप्रायः परिणामो माया। सा च प्रत्यासन्नवंशपर्वोपचितमूलमेषशृङ्गगोमूत्रिकाऽवलेखनीसदृशत्वाच्चतुर्विधा। अनुग्रहप्रवणद्रव्याद्यभिकांक्षावेशो लोभः । स च क्रिमिरागकज्जलकर्दमहरिद्रारागसदृशत्वाच्चतुर्विधः । एकशः प्रत्येकमित्यर्थः । ते क्रोधमानमायालोभाः प्रत्येकं चतुरवस्था भवन्ति । अनन्तानुबन्धिनश्चाप्रत्याख्यानाश्च प्रत्याख्यानाश्च संज्ज्वलनाश्च अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्ज्वलना इति । तत्राऽनन्तसंसार
केवल कर्म भूमि के मनुष्य तिर्यंचों में है । देव नारकी तथा भोग भूमि के मनुष्य तिर्यंचों में द्रव्य भाव वेद समान ही होते हैं ।
शरीर के आकार नामकर्म द्वारा रचित होते हैं । स्त्री वेद के समान पुरुष वेद और नपुंसक वेद का व्याख्यान समझना चाहिए, अर्थात् जिसके उदय से जीव पुरुष सम्बन्धो भावों को प्राप्त करता है वह पुरुष वेद है, जिसके उदय से आत्मा नपुंसक भावको पाता है वह नपुसक वेद है ।
___ अब कषायवेदनीय के सोलह भेद बतलाते हैं-कषाय चार हैं क्रोध, मान, माया और लोभ । जो स्व और परका घातक है अनुग्रह रहित भाव है, क्रूर परिणाम पैदा करता है ऐसा जो आमर्ष है वह क्रोध है । क्रोध चार प्रकार का है-पर्वत रेखा समान, पृथिवी रेखा समान, वालु रेखा समान और जल रेखा समान । जाति, कुल, रूप इत्यादि के निमित्त से परको नहीं झुकने के जो परिणाम है वह मान है, इसके भी चार भेद हैंशैलस्तंभ समान, अस्थि समान, दारु-लकड़ी समान और लता समान । परको ठगने हेतु जो कुटिलता होती है वह माया है । वह चार प्रकार की है प्रत्यासन्न बांस.. की जड़ के समान, मेंढे के सींग के समान, गोमूत्र के समान और अवलेखनी (खरूपा) के समान । अनुग्रह में प्रवण ऐसे द्रव्य आदि की वाञ्छारूप लोभ है इसके भी चार भेद हैं-क्रिमि रंग समान, काजल समान, कीचड़ समान और हल्दी के समान । इन क्रोध, मान, माया और लोभ के प्रत्येक की चार अवस्थायें होती हैं । अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन । अनन्त संसार का कारण होने से मिथ्यात्व को