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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती प्रदेशबन्धौ योगनिमित्तौ । स्थित्यनुभवबन्धी कषायहेतुकावित्युक्तौ। तत्र प्रकृतिबन्धो द्वेधा विभज्यतेमूलप्रकृतिबन्ध उत्तरप्रकृतिबन्धश्चेति । यद्येवं मूलप्रकृतिबन्धस्य के प्रकारा इत्यत्रोच्यते
. प्राद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नामगोत्रान्तरायाः ॥४॥
आदौ भव आद्यो मूलप्रकृतिबन्ध इत्यर्थः । नन्वाद्यशब्दस्य ज्ञानावरणादिभिः सामानाधिकरण्यसद्भावात् । बहुवचननिर्देशः प्राप्नोतीति चेत्सत्यमेवमेतत्कितु द्रव्याथिकनयविशेषस्य सामान्यस्यार्पणादेकः प्रकृतिबन्ध इत्याद्यशब्दादेकवचननिर्देशः कृतः। तद्भेदास्तु ज्ञानावरणादयः पर्यायाथिकनय विषयभूताः प्राधान्येन विवक्षिता इति तेभ्यो बहुवचनप्रयोगः। दृश्यते हि लोके सत्यपि सामानाधिकरण्ये वचनभेदः । यथा प्रमाणं श्रोतारो, गावो धनमिति । ज्ञानावरणादयः शब्दाः कादिषु साधनेषु यथा
'चार प्रकार हैं ऐसा समुदायार्थ है । प्रकृति बन्ध और प्रदेश बन्ध योग से होते हैं और स्थिति एवं अनुभव कषाय से होते हैं । प्रकृति बन्ध के दो भेद हैं-मूल प्रकृतिबन्ध और उत्तर प्रकृति बन्ध ।
प्रश्न-यदि ऐसे भेद हैं तो मूलप्रकृति बन्धके कौन प्रकार हैं ? उत्तर-अब उन्हीं प्रकारों को सूत्र द्वारा कहते हैं
सूत्रार्थ-पहले मूल प्रकृति बन्धके ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ये आठ भेद या प्रकार हैं ।
आदि में जो हुआ वह आद्य है अर्थात् मूलप्रकृति बन्ध ।
शंका-आद्य शब्दका ज्ञानावरण आदि शब्दों के साथ सामानाधिकरण्य संभव है अतः आद्य शब्दका बहुवचन में प्रयोग होना चाहिए ।
समाधान- सत्य है, किन्तु द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा सामान्यतः प्रकृति बन्ध एक है इस दृष्टि से आद्य शब्द एक वचन में आया है। उसके भेद ज्ञानावरण इत्यादि हैं वे पर्यायाथिकनय के विषयभूत हैं उनको प्रधानता से विवक्षित कर उन शब्दों का बहुवचन से प्रयोग किया है। लोक में भी देखा जाता है कि सामान्याधिकरण्य होने पर भी वचन भेद-एकवचन, बहुवचन इत्यादि भेद पाया जाता है, जैसे-प्रमाणं श्रोतारः, गावो धनम्, श्रोतागण प्रमाण है, गायें धन हैं । इन वाक्यों में प्रमाण शब्द एक वचन वाला है श्रोता शब्द बहुवचन वाला है, गायें शब्द बहुवचनान्त है और धन