SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 508
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टमोऽध्यायः [ ४६३ सम्भवं साधयितव्याः । तद्यथा - यत्स्वतन्त्रमा वृणोति प्रच्छादयति ज्ञानं दर्शनं च येन वोपकरणेनाव्रियते तदावरणं कर्मोच्यते । तच्च द्वेधा - प्रावरणशब्दस्य प्रत्येकमभिसम्बन्धात् । ज्ञानावरणं दर्शनावरणं चेति करणाधिकरणयोर्युटी विधानात् । कथं कर्तरीति चेद्युट्ट्ट्या बहुलमिति वचनात् । वेदयति वेद्यतेऽनुभूयत इति वा वेदनीयम् । श्रद्धानं चारित्रं च यो मोहयति विलोपयति मुह्यतेनेनेति वा स मोहः कर्मविशेषः । कथं ज्ञानावरणीयं दर्शनावरणीयं वेदनीयं मोहनीयमिति च रूपमिति चेद्बहुलापेक्षया कर्तर्यनीयस्य विधानात् । एत्यनेन गच्छति नारकादिभवमित्यायुः । जनेरुसीति वर्तमाने एते णिच्चेत्युसिः । नमयत्यात्मानं नारकादिभावेन नम्यतेऽनेनेति वा नाम । उरगादिषु निपातितोऽयं शब्द: । उच्चैर्नीचैश्च शब्द एक वचनान्त, फिर भी इनमें सामानाधिकरण है । इसीप्रकार आद्यो पद एक वचनान्त है और ज्ञानावरणादि पद बहुवचनान्त है तो भी उनमें सामानाधिकरण स्वीकार किया गया है । ज्ञानावरण आदि शब्द यथा सम्भव कर्त्ता आदि साधनों में सिद्ध करने चाहिए | अब उसीको बतलाते हैं - जो स्वतंत्ररूप से ज्ञान और दर्शन का आवरण करता है, उनको ढ़क देता है, अथवा जिस उपकरण द्वारा आवृत किया जाता है वह आवरण कर्म है । वह आवरण दो प्रकार का है, क्योंकि आवरण शब्द का प्रत्येक के साथ सम्बन्ध है ज्ञानावरण और दर्शनावरण । आवरण शब्द 'करण और अधिकरण में युट् प्रत्यय आता है' इस व्याकरण के नियमानुसार आ उपसर्ग वृ धातु और युट् प्रत्यय से 'आवरण' बना है | प्रश्न – करण और अधिकरण में युट् आता है तो कर्त्ता अर्थ में युट् प्रत्यय कैसे आयेगा ? आपने तो कर्त्ता अर्थ में भी आवरण शब्द निष्पन्न किया है ? उत्तर-- - 'युट् व्या बहुलम्' इस व्याकरण सूत्र से कर्तरिसाधन या कर्त्ता अर्थ में युट् प्रत्यय लाया है । जो वेदन या अनुभवन कराता है वह वेदनीय है । श्रद्धान और चारित्र को जो मोहित करता है-लुप्त करता है अथवा जिसके द्वारा मोहित किया जाता है वह मोह है, मोह कर्म है । प्रश्न - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और मोहनीय ये शब्द कैसे बने हैं ? उत्तर - व्याकरण में बहुल की अपेक्षा रहती है उससे कर्त्ता अर्थ में 'अनीय' प्रत्यय से ज्ञानावरणीय इत्यादि शब्द बने हैं । जिसके द्वारा नारकादि भव में आता है वह आयु है । 'जनेरुसीति' इस व्याकरण सूत्र से 'इण् गतौ ' धातु से 'एतेणिच्' इस सूत्र द्वारा 'उस्' प्रत्यय आकर आयुस् शब्द बना है । जो आत्माको नारकादि भाव से नमाता 1
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy