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सप्तमोऽध्यायः
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प्रोच्यते । क्षेत्रं च वास्तु च क्षेत्रवास्तु । हिरण्यं च सुवर्णं च हिरण्यसुवर्णम् । धनं च धान्यं च धनधान्यम् । दासी च दासश्च दासीदासम् । क्षेत्रवास्तु च हिरण्यसुवर्णं च धनधान्यं च दासीदासं च कुप्यं च क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यानि । एतावानेव परिग्रहो मम नातोऽन्य इति परिच्छित्तिः प्रमाणम् । अतिलोभवशादतिरेकोऽतिक्रमः । प्रमाणस्याऽतिक्रमः प्रमाणातिक्रमः । एतस्य क्षेत्रवास्त्वादिभिः प्रत्येकमभिसम्बन्धत्वात्पञ्चविधत्वं बोद्धव्यम् । क्षेत्रवास्त्वादीनां प्रमाणातिक्रमाः क्षेत्रवास्त्वादिप्रमाणातिक्रमाः। ते पञ्च परिग्रहविरतेरणुव्रतस्यातिचारा बोद्धव्याः। इदानीं दिग्विरमणशीलस्याऽतिचारानाह
ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि ॥३०॥ परिमितस्य दिगवधेः प्रमादमोहव्यासङ्गादिभिरतिलंघनं व्यतिक्रम इत्युच्यते । ऊर्ध्व चाधश्च तिर्यक्च तानि । तेषां व्यतिक्रमा ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमाः । सम्बन्धिनां त्रैविध्याद्व्यतिक्रमस्यापि त्रैविध्यम् । ऊर्ध्वव्यतिक्रमोऽधोव्यतिक्रमस्तिर्यग्व्यतिक्रमश्चेति । तत्र पर्वततरुभूम्यादीनामारोहणादूर्वा
स्त्री पुरुष रूप सेवक जन । रेशमी, कपास, कौशेप चन्दनादि को कुप्य कहते हैं । क्षेत्र और वास्तु, हिरण्य और सुवर्ण, धन और धान्य, दासी और दास इस तरह दो-दो पदों का द्वन्द्व करके फिर कुप्य पदके साथ द्वन्द्व समास किया है। इन पदार्थों में से मझे इतने ही प्रयोजनीभूत हैं इनसे अधिक नहीं इस प्रकार प्रमाण करते हैं पुनः अतिलोभ के वश में होकर उक्त प्रमाण का उल्लंघन करना प्रमाणातिक्रम कहलाता है। क्षेत्र वास्तु इत्यादि प्रत्येक युगल के साथ प्रमाणातिक्रम शब्द जुड़ता है और इससे क्षेत्र वास्तु आदि के पांच प्रमाणाति क्रम बन जाते हैं ये परिग्रह प्रमाण अणुव्रत के पांच अतिचार जानने चाहिए।
अब दिग्विरति शील के अतिचारों को कहते हैं
सत्रार्थ-ऊर्ध्व अतिक्रम, अधो अतिक्रम, तिर्यग्व्यतिक्रम, क्षेत्र वृद्धि और स्मृत्यन्तराधान ये पांच दिग्वत के अतिचार जानने ।
मर्यादित दिशा के सीमा का प्रमाद मोह व्यासंग आदि के कारण उल्लंघन करना व्यतिक्रम है । ऊर्ध्व अधः और तिर्यग् इन तीनों का उल्लंघन करना क्रमशः तीन व्यतिक्रम-अतिचार हैं। संबंधी तीन होने से अतिचार भी तीन हुए ऊर्ध्व व्यतिक्रम, अधो व्यतिक्रम और तिर्यग्ध्यतिक्रम । पर्वत, वृक्ष, भूमि आदि के चढ़ने में ऊर्ध्व व्यतिक्रम होता है । कूप में उतरने आदि में अधो व्यतिक्रम होता है और भूमि के बिल, पर्वत के