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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती मेढ़ योनिश्चोचितमङ्गम् । ततोऽन्यानि गुदमुखादीन्यनङ्गानि । तेषु क्रीडनं रमणमनङ्गक्रीडेति परिभाष्यते । कामोऽनङ्गः प्रसिद्धः । तीव्रः प्रवृद्धोऽभिनिवेशः परिणाम इति कथ्यते। तीव्रश्चासावभिनिवेशश्च तीव्राभिनिवेशोऽनुपरतवृत्त्यादिः । कामस्य तीव्राभिनिवेशः कामतीव्राभिनिवेशः । पुनः परविवाहकरणादीनामितरेतरयोगे द्वन्द्ववृत्तिः । त इमे पञ्च स्वदारसन्तोषाणुव्रतस्यातिचारा वेदितव्याः। ननु दीक्षितातिबालातर्यग्योन्यादिषु परिहर्तव्यासु वृत्तिरप्यतिचारोऽस्ति, ततस्तत्संग्रहः व्रतो भवतीति चेत्-कामतीव्राभिनिवेशात्तत्संग्रह इति ब्रूमः । अत्र पूर्वोक्त एव दोषो राजभयलोकापवादादिर्बोद्धव्यः । परिग्रहविरमणाणुव्रतस्याऽतिचाराऽवबोधनार्थमाह
क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः ॥२६॥
क्षेत्रं सस्योत्पत्त्यधिष्ठानम् । वास्तु गृहम् । हिरण्यं रूप्यादिकं व्यवहारतन्त्रम् । सुवर्ण प्रतीतम् । धनं गवादि । धान्यं व्रीह्यादि । दासीदासं भृत्यस्त्रीपुसवर्गः । कुप्यं क्षौमकासकौशेयचन्दनादि तत्पुरुष समास द्वारा गमन शब्द जोड़ना। मेढ़-पुरुष का लिंग और स्त्री की योनि उचित अंग है, उनसे अन्य गुदा मुख इत्यादि अनंग हैं उनमें रमण अनंग क्रीडा कहलाती है । अनंग का अर्थ काम प्रसिद्ध ही है । प्रवृद्ध परिणाम तीव्र अभिनिवेश है अर्थात् सतत् कामेच्छा । काम तीव्राभिनिवेश में तत्पुरुष समास है। फिर परविवाह करण आदि पदों में इतरेतर द्वन्द्व समास है। ये स्वदार सन्तोष व्रत के पांच अतिचार हैं।
शंका-दीक्षित स्त्री, अति बाला, तिथंचनी इत्यादि त्याज्य स्त्रियों में गमन प्रवृत्तिरूप अतिचार माना गया है उसका संग्रह भी इन अतिचारों में होना चाहिए ?
समाधान-हमने उस अतिचार को कामतीव्राभिनिवेश नामके अतिचार में अन्तर्भूत किया है। उपर्युक्त अतिचारों में पूर्ववत् राजभय, लोकोपवाद इत्यादि दोष आते हैं ऐसा समझना चाहिए ।
परिग्रह प्रमाण अणुव्रत के अतिचार बतलाते हैं
सत्रार्थ-खेत गृह, चांदी सोना, धन धान्य, दासी दास और कुप्य पदार्थों के प्रमाण का अतिक्रमण कर जाना परिग्रह प्रमाण अणुव्रत के पांच अतिचार हैं।
धान्यों के उत्पत्ति के स्थान को क्षेत्र कहते हैं । वास्तु घर है हिरण्य चांदी आदि ' लेन देन के व्यवहार का कारणभूत जो द्रव्य है । वह हिरण्य है । सुवर्ण प्रसिद्ध ही है। गाय आदि को धन कहा जाता है । चावल आदि को धान्य कहते हैं । दासीदास अर्थात