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॥ श्रीमत्पञ्चगुरुभ्यो नमः ॥ श्रीभास्करनन्दिविरचिता
- सु ख बो धा त त्वा र्थ वृत्तिः जयन्ति कुमतध्वान्तपाटने पटुभास्कराः ।
विद्यानन्दाः सतां मान्याः पूज्यपादा जिनेश्वराः ॥ ..प्रथातिविस्तरमन्तरेण विमतिप्रतिबोधनार्थमिष्टदेवतानमस्कारपुरस्सरं तत्त्वार्थसूत्रपदविवरणं क्रियते । तत्रादौ नमस्कारश्लोक:
मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् । ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ॥
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अर्थ-जो खोटे मतरूपी अन्धकार को नष्ट करने में श्रेष्ठ सूर्य हैं विद्या और आनन्द अर्थात् अनन्तज्ञान-केवलज्ञान और अनन्तसुख युक्त हैं, सज्जनों को मान्य हैं, जिनके चरणकमल त्रिलोक द्वारा पूजित हैं ऐसे जिनेश्वर जयशील होते हैं।
विशेषार्थ-श्री भास्करनन्दि आचार्य महाशास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र की वृत्ति [टीका] प्रारम्भ करते हुए सर्वप्रथम आशीर्वादात्मक मंगलाचरण करते हैं । इस मंगल श्लोक में जिनेन्द्रदेव का जयघोष किया है, इसमें जिनेश के चार विशेषण हैं “पटुभास्कराः" इस विशेषण से स्व नाम घोषित होता है, "विद्यानन्दाः" इससे अपने से पूर्व आचार्य जो विद्यानन्द हैं [श्लोक वात्तिक के रचयिता] उनका नाम स्मरण कर लिया है और "पूज्यपादाः" इससे सर्वार्थसिद्धिकार पूज्यपाद आचार्य का पुण्य स्मरण श्रीभास्करनन्दि ने किया है । "सतांमान्याः" यह सर्व सामान्य विशेषण है ।
अथानन्तर अल्प विस्तार से युक्त अल्प बुद्धि वालों को प्रतिबोध के लिये इष्ट देवता को नमस्कार पूर्वक तत्त्वार्थ सूत्रों के पदों का विवरण किया जाता है । उसके प्रारम्भ में नमस्कार श्लोक प्रस्तुत करते हैं