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विषय
शुक्लध्यान के स्वामी शुक्लध्यान के चार नाम
शुक्लध्यान योग की व्यवस्था
सवितर्क और सवीचार प्रथम शुक्लध्यान है।
दूसरा शुक्लध्यान प्रवीचार है श्रुतज्ञान को वितर्क कहते हैं
वीचार का लक्षण
निर्जरा के दस स्थान निर्ग्रन्थ मुनियों के पांच भेद संयमादि की अपेक्षा मुनियों का कथन
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केवलज्ञान उत्पत्ति हेतु मोक्ष का स्वरूप
मोक्ष में पशमिक आदि भावों का प्रभाव केवलज्ञानादि भाव मोक्ष में हैं ऊर्ध्वगमन
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गा
मन में
ऊर्ध्व गमन के लिए दृष्टांत लोक के आगे गमन नहीं होता
सिद्धों का क्षेत्रादि पेक्षा कथन संस्कृत ग्रन्थकार की प्रशस्ति ग्रंथ पूर्ण अनुवादिका की प्रशस्ति
१. परिशिष्ट - तत्त्वार्थ सूत्र
२. परिशिष्ट - ग्रन्थ में प्रागत व्याकरण सूत्र शुद्धि पत्र
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बसवां अध्याय
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* सूचना
इस ग्रंथ में सूत्र के अर्थ की पंक्तियों के साथ टीका के अर्थ की पंक्तियां शामिल हो गई हैं । विशेषार्थ में टीकार्थ भी मिल गया है अर्थात् सूत्रार्थ के बाद पैरा बदलना चाहिए था वह नहीं बदला है । विशेषार्थ की समाप्ति पर भी पैरा बदलना चाहिये वह नहीं बदला है । पाठकगरण सुधार समझ कर पढ़ें ।