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________________ सप्तमोऽध्यायः [ ४०९ मदत्ताऽऽदानमित्येतद्विशेषणमयुक्त स्यात् । दानार्हस्य प्रसक्तस्य न दत्तमदत्तमिति प्रतिषेधोपपत्तेः । न च कर्मादेहस्तादिभिर्ग्रहणविसर्गयोग्यतास्ति तस्य सूक्ष्मत्वात् । अथ मतमेतत्-शब्दादिविषयरथ्याद्वारादीन्यदत्तान्याददानस्य भिक्षोस्तेयं प्राप्नोतीति । तन्न युक्त वक्तुम् । कुतः ? तस्याऽप्रमत्तत्वात् । यत्नवतो ह्यप्रमत्तस्य ज्ञानिन: शास्त्रदृष्टया शब्दादिविषयरथ्याद्वाराद्यादानेऽपि विरतस्य न स्तेयप्रसिद्धिः-सामान्यतो मुक्तत्वादत्तमेव वा तत्सर्वम् । तथा ह्ययं भिक्षुः पिहितद्वारादिषु न प्रविशति । अथाऽब्रह्म किं लक्षणमित्यत्रोच्यते मैथुनमब्रह्म ॥ १६ ॥ स्त्रीपुसयोर्युगलं मिथुनमित्युच्यते । तस्य मिथुनस्य कर्म मैथुनम् । नन्वेवं स्त्रीप्रव्रजितपुरुषयोर्नमस्काराद्यासेवने मैथुनं प्रसज्यत इति चेत्, अत्रोच्यते-न सर्व स्त्रीसमिथुनविषयं कर्म मैथुनं विशेषण व्यर्थ ठहरता। दूसरी बात यह भी है कर्मादिक वस्तुएं हाथ आदि से ग्रहण करने या छोड़ने योग्य नहीं हैं वे तो सूक्ष्म हैं । शंका-ठीक है ! फिर भी साधुजनों से शब्द आदि पदार्थ कर्ण द्वारा ग्रहण किये जाते हैं, नगर ग्राम आदि के द्वारों में प्रवेश आदि किया जाता है उसमें चोरीका दोष होगा क्योंकि ये सब 'अदत्तादान' बिना दिये ग्रहण में आते हैं ? __समाधान-ऐसा नहीं कह सकते । क्योंकि इसमें प्रमत्तपना नहीं है । प्रयत्नशील ज्ञानवान अप्रमत्त साधुजन शास्त्र दृष्टि से शब्दादि विषय एवं गलीमें प्रवेश आदि ग्रहण करते हुए भी उस विरक्त के चोरी का दोष प्राप्त नहीं होता। क्योंकि पहली बात तो यह है कि उनके प्रमादका योग नहीं है, दूसरी बात ये शब्दादि पदार्थ सामान्यतः सभी के लिए मुक्त रहते हैं इसलिये वे दिये हुए माने जाते हैं । तथा साधुजन ढके हुए द्वारों को खोलकर प्रवेश नहीं करते हैं जो गली गोपुर आदि के द्वार खुले हैं उनमें प्रवेश करते हैं अतः कोई दोष नहीं है । __अब अब्रह्मका लक्षण क्या है ऐसा प्रश्न होने पर सूत्र कहते हैं सूत्रार्थ-- मैथुन सेवन को अब्रह्म कहते हैं । स्त्री पुरुष के युगलको मिथुन कहते हैं उस मिथुन की क्रिया को मैथुन कहते हैं । शंका-यदि ऐसा अब्रह्मका लक्षण करते हैं तो दीक्षित हुए स्त्री पुरुषों में नमस्कार आदि क्रिया में मैथुनका प्रसंग आ जायेगा ?
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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