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________________ सप्तमोऽध्यायः [ ३९१ सम्बन्धः । व्रतदृढत्वार्थ हेतुविशेषमाह तत्स्थर्यार्थ भावनाः पञ्च पञ्च ॥३॥ तस्य पञ्चविधस्य व्रतस्य स्थैर्य तत्स्थैर्यम् । तत्स्थैर्याय तत्स्थैर्यार्थम् । विशिष्टेनात्मना भाव्यन्तेऽनुष्ठीयन्ते ता इति भावनाः परिणामा इत्यर्थः । पञ्चप्रकारस्य व्रतस्य स्थैर्यनिमित्त प्रत्येक पञ्चपञ्च भावना वेदितव्याः । यद्येवमाद्यस्याऽहिंसाव्रतस्य कास्ता इत्यत्रोच्यते वाङ मनोगुप्तोर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि पञ्च ॥४॥ वाक्च मनश्च वाङ मनसी । गुप्तिक्ष्यमाणरूपा। सा सम्बन्धिभेदाद्भिद्यते । वाङ मनसोर्गुप्ती वाङ मनोगुप्ती। ईर्या चाऽऽदाननिक्षेपणं चेर्याऽऽदाननिक्षेपणे । ते च ते समिती च ईर्याऽऽदाननिक्षेपणसमिती। आलोक्यते स्मालोंकितम् । पानं च भोजनं च पानभोजनम् । आलोकितं च तत्पानभोजनं चाऽऽलोकितपानभोजनम् । एतदुक्त भवति–वाग्गुप्तिर्मनोगुप्तिरीयर्यासमितिरादाननिक्षेपणसमितिरा व्रतोंको दृढ़ करने वाले कारण बताते हैंसूत्रार्थ-उन व्रतोंको दृढ़ करने के लिए पांच पांच भावनायें होती हैं । उन पांच व्रतोंको स्थिर करने हेतु पांच पांच भावनायें हैं, विशिष्ट आत्मा द्वारा भायी जाती हैं, अनुष्ठानरूप की जाती हैं, वे भावना अर्थात् परिणाम हैं। पांच प्रकार के व्रत हैं और उनको स्थिरता हेतु पांच पांच भावना हैं ऐसा समझना चाहिए। प्रश्न-यदि ऐसी बात है तो पहले अहिंसाक्त की भावनायें कौनसी हैं यह बताइये? समाधान-आगे इसीको बताते हैं सूत्रार्थ-वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपण समिति और आलोकित पान भोजन ये पांच भावनायें अहिंसा व्रत की हैं । वचन और मन पदों में द्वन्द्व समास करना। गुप्तिका लक्षण आगे कहेंगे। उसके सम्बन्धी के भेद से भेद होते हैं, अर्थात् वचन और मनसम्बन्धी गुप्ति । ईर्या और आदान निक्षेपण पदों में द्वन्द्व समास है फिर समिति शब्दके साथ कर्मधारय समास है। जो देखा जा चुका है वह आलोकित है। यहां भी पान और भोजन पदोंका द्वन्द्व करके आलोकित शब्दके साथ कर्मधारय समास हुआ है। अभिप्राय यह हुआ कि वचनगुप्ति,
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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