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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तो दिभ्यः पापपरिणामेभ्यो निवृत्तिरहिंसादिषु च पुण्यपरिणामेषु प्रवृत्तिरिति गुप्तयादिसंवरपरिकर्मत्वाच्चात्रास्रवाधिकारे व्रतं पृथगुक्तमिति नास्ति दोषः। रात्रिभोजनवर्जनाख्यं तु षष्ठमणुव्रतमालोकितपानभोजनभावनारूपमग्रे वक्ष्यते । हिंसादिविरमणभेदेन पञ्चविधव्रतमुक्तम् । इदानीं तस्य द्वैविध्यं कथं चित्प्रतिपादयन्नाह
देशसर्वतोऽणुमहती ॥२॥ कुतश्चिदवयवाद्दिश्यते कथ्यत इति देशः-प्रदेश-एकदेश इत्यर्थः । सरति गच्छत्यशेषानवयवानिति सर्वः सम्पूर्ण इत्यनर्थान्तरम् । देशश्च सर्वश्च देशसवौं । देशसर्वाभ्यां देशसर्वतः । अणु सूक्ष्ममित्यर्थः । महढहदित्युच्यते । अणु च महच्चाणुमहती। व्रतापेक्षया नपुंसकलिङ्गनिर्देशः । विरतिरित्यनुवर्तते । ततो हिंसादिभ्यो देशेन विरतिरणुव्रतं, सर्वतो विरतिर्महव्रतमिति यथासंखयमभि
निवृत्ति होती है और पुण्य परिणाम स्वरूप अहिंसादि में प्रवृत्ति होती है इसतरह व्रतों में उभयपना है, यह व्रत गुप्ति आदि जो संवर हैं उनके लिये परिकर्म-सहाय स्वरूप हैं । इसलिए यहां पर आस्व अधिकार में व्रतको पृथक्प से कहा गया है, इसमें कोई दोष नहीं है।
रात्रि भोजन त्यागरूप छठा अणुव्रत भी माना जाता है किन्तु उसको आलोकित पान भोजन नामकी भावना रूप स्वीकार कर आगे कहा जायगा । हिंसादि पांच पापों से विरतिरूप होने से व्रत भी पांच प्रकार का होता है ।
अब उस व्रतके दो प्रकार कैसे होते हैं यह बतलाते हैं___ सूत्रार्थ-एक देशव्रत अणुव्रत कहलाता है और सर्व देशव्रत महाव्रत कहलाता है, अर्थात हिंसादि से एक देश विरक्त होना अणुव्रत है और उनसे सर्वदेश विरक्ति होना महाव्रत है।
किसी अवयव से जो कहा जाता है वह देश प्रदेश या एक देश है। यह 'देश' शब्दकी निरुक्ति है । 'सरति अशेषान् अवयवान् इति सर्वः' यह सर्व शब्दकी निरुक्ति है। सर्व सम्पूर्ण एकार्थवाची शब्द है । देश और सर्व में द्वन्द्व समास करके तस् प्रत्यय किया है। अणुका अर्थ सूक्ष्म है और महत् का अर्थ बृहत्-बड़ा है अणुमहती ऐसा व्रतकी अपेक्षा नपुसक लिंग निर्देश किया है। विरति का प्रकरण है ही उससे हिंसादि से देशरूप से विरत होना अणुव्रत है और सर्व देशरूप से विरत होना महाव्रत है ऐसा क्रम से सम्बन्ध करना चाहिए।