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षष्ठोऽध्यायः
शशधरक र निकरसता र निस्तलतलतल मुक्ताफलहारस्फारतारानि कुरुम्ब बिम्ब निर्मल तर परमोदार शरीरशुद्धध्यानानलोज्ज्वलज्वालाज्वलितघनघातीन्धन सङ्घातसकल विमल केवलालोकित
सकललोकालोकस्वभावश्री मत्परमेश्वरजिन पतिमत विततमतिचिदचित्स्वभावभावाभिधानसाधितस्वभावपरमाराध्यतममहा सैद्धान्तः श्रीजिनचन्द्रभट्टारकस्तच्छिष्य पण्डितश्रीभास्करनन्दिविरचित
महाशास्त्रतत्त्वार्थवृत्ती सुखबोधायां षष्ठोऽध्याय समाप्तः ।
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जो चन्द्रमा को किरण समूह के समान विस्तीर्ण, तुलना रहित मोतियों के विशाल हारों के समान एवं तारा समूह के समान शुक्ल निर्मल उदार ऐसे परमोदारिक शरीर के धारक हैं, शुक्ल ध्यान रूपी अग्नि की उज्ज्वल ज्वाला द्वारा जला दिया है घाती कर्म रूपी ईन्धन समूह को जिन्होंने ऐसे तथा सकल विमल केवलज्ञान द्वारा संपूर्ण लोकालोक के स्वभाव को जानने वाले श्रीमान परमेश्वर जिनपति के मत को जानने में विस्तीर्ण बुद्धि वाले, चेतन अचेतन द्रव्यों को सिद्ध करने वाले परम आराध्य भूत महासिद्धान्त ग्रन्थों के जो ज्ञाता हैं ऐसे श्री जिनचन्द्र भट्टारक हैं उनके शिष्य पंडित श्री भास्करनंदी विरचित सुख बोधा नामवाली महा शास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र की टीका में षष्ठ अध्याय पूर्ण हुआ ।