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________________ षष्ठोऽध्यायः [ ३७३ स्वभावःमार्दवं च ॥ १८ ॥ स्वभाव प्रकृतिः परोपदेशाऽनपेक्षतेत्यर्थः। मृदुनिरहङ्कारो मानकषायरहितः पुमानुच्यते । मृदोर्भावः कर्म वा मार्दवम् । स्वभावेन मार्दवं स्वभावमार्दवम् । तदपि मानुषायुषो हेतुर्भवति । ननु पूर्वत्र व्याख्यातमेवेदं पुनर्ग्रहणमनर्थकम् । सूत्रे नोपात्तमिति कृत्वा पुनरिदमुच्यते । तह्यको योगः कर्तव्यः-अल्पारम्भपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवं च मानुषस्येति । सत्यमुत्तरार्थं पृथग्योगकरणं दैवस्याप्यायुषः स्वभावमार्दवमास्रवो यथा स्यादिति । कि प्रागुक्त द्वितयमेव मानुषस्यावा? नेत्युच्यते निःशीलवतत्वं च सर्वेषाम् ॥ १६ ॥ शीलानि च व्रतानि च शीलव्रतानि वक्ष्यमाणानि । तेभ्यो निष्क्रान्तो निःशीलव्रतस्तस्य भावो निःशीलव्रतत्वम् । चशब्दोऽधिकृतस्याऽल्पारम्भपरिग्रहत्वस्य समुच्चयार्थः । ततो न केवलं निःशीलव्रतत्वं सूत्रार्थ-स्वभाव से मृदुता होना भी मनुष्य आयुका आसव है । स्वभाव अर्थात् प्रकृति, परके उपदेश के बिना ही कोमलता होना स्वभाव मार्दव कहलाता है । अहंकार रहित मान कषाय रहित पुरुष को मृदु कहते हैं । मृदु के भाव या कर्मको मार्दव कहते हैं । स्वभाव से मृदुता होना भी मनुष्य आयुका आसव है। शंका-पूर्व सूत्र में यह कह दिया है यहां व्यर्थ ही पुनः इस आसव को क्यों कहा जा रहा है ? समाधान-पूर्व सूत्र में स्वभाव मार्दवको नहीं लिया था अतः यह सूत्र आया है । शंका-तो फिर दोनों का एक ही सूत्र बनाना चाहिए–'अल्पारम्भ परिग्रहत्वं स्वभाव मार्दवं च मानुषस्य' ऐसा सूत्र रचते ? समाधान-ठीक है । किन्तु आगे के सूत्र के साथ सम्बन्ध जोड़ने के लिए पृथक सूत्र रचा है अर्थात् स्वभाव मार्दवरूप भाव देव आयुका भी आसव है, ऐसा अर्थ सिद्ध करने के लिये पृथक् सूत्र रचे हैं । प्रश्न- ये कहे हुए दो ही आसव मानुष आयु के होते हैं या अन्य भी ? उत्तर-इसी का समाधान सूत्र द्वारा करते हैं सूत्रार्थ-शील और व्रतका कथन आगे करेंगे, उनसे जो रहित है वह निःशील व्रत है उसका भाव निःशीलव्रतत्व है । च शब्द से अधिकृत अल्प आरम्भ परिग्रह का
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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