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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती ___चारित्रमोहकर्मोदयाविर्भूत आत्मनः कुटिलस्वभावो माया निकृतिर्वञ्चनेति च व्यपदिश्यते । तैर्यग्योना उक्तलक्षणास्तेषामिदं तैर्यग्योनम् । तस्य तैर्यग्योनस्यायुषो माया हेतुर्भवतीति संक्षेपः । तत्प्रपञ्चस्तु मिथ्यात्वोपेतधर्मदेशना निःशीलताऽतिसन्धानप्रियता नीलकपोतलेश्याभिजातार्तध्यानमरणकालतादिलक्षणः । सांप्रतं मानुषस्यायुषो हेतुमाह
___ अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य ॥ १७ ॥ . अल्पः स्तोक इत्यर्थः । प्रारम्भश्च परिग्रहश्चारम्भपरिग्रही । अल्पावारम्भपरिग्रही यस्य सोऽल्पारम्भपरिग्रहस्तस्य भावोऽल्पारम्भपरिग्रहत्वम् । मानुषाणामिदमायुर्मानुषम् । तस्याल्पारम्भपरिग्रहत्वं हेतुर्भवतीति संक्षेपः । तयासस्तु-मिथ्यादर्शनाऽलिङ्गितमिति विनीतस्वभावता प्रकृतिभद्रता प्राञ्जलव्यवहारता तनुकषायता कपोतपीतलेश्योपश्लेषधर्मध्यानमरणकालतादिलक्षणः । अपरोऽपि मानुषस्यायुष आस्रवोऽस्तीति तं प्रतिपादयन्नाह -
सत्रार्थ-मायाचार से तिर्यंच आयुका आसव होता है। चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न हुए आत्माका कुटिल भाव माया कहलाती है, माया निकृति, वंचना ये एकार्थवाची शब्द हैं । तिर्यंच योनि वालों का लक्षण कह दिया है, उस तिर्यंच आयु का आसव माया है। यह संक्षेप कथन है । विस्तार से मिथ्यात्व भरा उपदेश देना, शील नहीं पालना, अतिसंधान प्रियता, नील लेश्या से उत्पन्न हुए आत ध्यान से मरण इत्यादि तिर्यंच आयुके आसव हैं।
अब मनुष्य आयुके आसव को कहते हैंसूत्रार्थ- अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रह मनुष्य आयु का आसव है ।
अल्प अर्थात् स्तोक-थोड़ा । आरम्भ और परिग्रह पदों का द्वन्द्व समास कर फिर बहुब्रीहि समास करना। अल्प है आरम्भ परिग्रह आसव जिसके ऐसा समास करना चाहिए । मनुष्य की आयुका आसव अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रह है। यह संक्षेप कथन हुआ। विस्तार पूर्वक कहते हैं-मिथ्यादर्शन में बुद्धि का होना, विनीत स्वभाव, स्वभाव से कोमलता, सरल व्यवहार, मन्दकषाय, कपोत लेश्या से युक्त परिणाम, धर्म ध्यानपूर्वक मरण इत्यादि मनुष्य आयु के आसव हैं।
दूसरा भी मनुष्य आयुका आसव बताते हैं