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________________ विषय व्रत स्थिरता की भावनायें हिंसा व्रत की भावना सत्यव्रत की भावना अचर्य व्रत की भावना ब्रह्मचर्य व्रत की भावना 6000 परिग्रह त्याग व्रत की भावना • हिंसादिक उभय लोक में अपाय कारक है। हिंसादि दुःख रूप ही है मैत्री आदि चार पवित्र भावनायें जगत और शरीर के स्वभाव का चिंतन वैराग्य के लिए करें www. .... हिंसा का लक्षण परवादी की शंका है कि सर्वत्र लोक में जीव राशि हैं तो गमनागमन से हिंसा कैसे नहीं होगी ? जैन द्वारा उक्त शंका का समाधान .... .... असत्य का लक्षरण चोरी का लक्षण ब्रह्म का लक्षण परिग्रह का लक्षण व्रती का लक्षण व्रती के दो भेद 'अगारी अणुव्रती है। दिव्रत आदि का कथन दिव्रत और देशव्रत में अन्तर सामायिक में स्थित श्रावक के उपचार से महाव्रत 1000 .... .... .... ( २८ ) सल्लेखना का स्वरूप सम्यग्दर्शन के अतिचार व्रत और शीलों के प्रतिचार प्रत्येक के पांच पांच हैं श्रहिंसाणुव्रत के प्रतिचार सत्यव्रत के प्रतिचार **** .... 0000 ORGO www. .... ---- www. .... .... 0000 .... .... **** 04.0 .... .... .... .... .... सूत्र ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५. १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५. २६ पृष्ठ ३९१ ३९१ ३९२ ३९२ ३९३ ३९५ ३९६ ३९८ ४०० ४०१ ४०२ ४०४ ४०५ ४०६ ४०८ ४०९ ४११ ४१२ ४१४ ४१५ ४१६ ४१९ ४२१ ४२३ ४२५ ४२६ ४२७ ४२८
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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