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________________ षष्ठोऽध्यायः [ ३६१ अन्यार्थत्वादस्य । संरम्भादिभ्योऽन्यानि निर्वर्तनादीनीत्येतस्यार्थस्य प्रतिपादनार्थोऽयं परशब्दः कृतः । इतरथा हि निर्वर्तनादीनामप्यात्मपरिणामसद्भावाज्जीवाधिकरणविकल्प एवेति विज्ञायते । तत्र मूलोत्तरभेदान्निर्वर्तनाद्वेधा - मूलनिर्वर्तना कायवाङ्मनः प्राणापानरूपा । उत्तरनिर्वर्तना काष्ठपुस्तचित्रकर्मभेदा । निक्षेपश्चतुर्धा भिद्यते - अप्रत्यवेक्षादुःप्रमार्जनसहसाऽनाभोगभेदात् । संयोगो द्वेधा - भक्तपानसंयोग उपकरणसंयोगश्चेति । निसर्गस्त्रेधा - कायवाङ मनोभेदात् । एतैर्निर्वर्तनादिभिरजीवास्रवस्य शंका- पूर्व सूत्र में 'आद्यं' शब्द आया है उसी सामर्थ्य से यहां पर पर शब्दका अर्थ स्वतः हो जाता है, इसलिये इस सूत्र में पर शब्द का प्रयोग व्यर्थ है ? समाधान - ऐसा नहीं कहना। यहां पर शब्द का दूसरा ही अर्थ लिया है, देखिये ! संरंभ आदि पहले कहे गये जो जीवाधिकरण हैं उनसे ये निर्वर्तना आदि भेद अजीव अधिकरणरूप पृथक् ही हैं, इसप्रकार का अर्थ यहां पर शब्द द्वारा सूचित किया है । यदि पर शब्द को वहां नहीं लेते तो निर्वर्तना आदि आत्म परिणामरूप भी सम्भव होने से वे सब जीवाधिकरण के ही भेद माने जाते । - निर्वर्तना के दो भेद हैं, मूल निर्वर्तना, उत्तर निर्वर्तना । मूल निर्वर्तना शरीर, वचन, मन और प्राणापानरूप हैं । उत्तर निर्वर्तना काष्ठ, कागज चित्र आदि के रचना स्वरूप है । अर्थात् पांच शरीर, वचन, मन और उच्छ्वास निश्वास की रचना को मूल निर्वर्तना कहते हैं । तथा लकड़ी के कागज इत्यादि के चित्र या खिलौने बनाना आदि उत्तर निर्वर्तना कहलाती है । निक्षेप चार प्रकार का है, अप्रत्यवेक्षा, दुःप्रमार्जन, सहसा और अनाभोग । बिना देखे वस्तु को रखना अप्रत्यवेक्षा निक्षेप है । बिना सोधे वस्तु रखना या अच्छी तरह सोधन नहीं करके वस्तुको रखना दुःप्रमार्जन निक्षेप है । अकस्मात् शीघ्रता से वस्तुको रखना सहसा निक्षेप है । बिना देखे किन्तु शोधन कर ( मार्जन कर ) वस्तुको रखना अनाभोग निक्षेप कहलाता है । संयोग दो प्रकार का है भक्तपान संयोग और उपकरण संयोग । निसर्ग तीन प्रकार का है कायनिसर्ग, वचननिसर्ग और मनोनिसर्ग | - इन निर्वर्तना आदि के द्वारा अजीव आसूवका प्रवर्त्तन होता है अत: इन्हें आसूव का अधिकरण कहते हैं ।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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