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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्वित्रिभेदाः परम् ॥६॥ .. निर्वर्तनादीनां शब्दानां कर्मसाधनानामर्थः कथ्यते । निर्वयंत इति निर्वर्तना निष्पादना। निक्षिप्यत इति निक्षेपः संस्थापना । संयुज्यत इति संयोगो मिश्रीकृतम् । निसृज्यत इति निसर्गः प्रवर्तनमिति । अथवा भावसाधना एते निर्वर्तनं निर्वर्तना। निक्षिप्तिनिक्षेपः । संयुक्तिः संयोगः । निसृष्टिनिसर्ग इति । निर्वर्तना च निक्षेपश्च संयोगश्च निसर्गश्च निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गाः । द्वौ च चत्वारश्च द्वौ च त्रयश्च द्विचतुर्दित्रयः । ते भेदा येषां ते द्विचतुर्वित्रिभेदाः । परमुत्तरमजीवाधिकरणमित्यर्थः । यदा निर्वर्तनादयः शब्दाः कर्मसाधनास्तैरिहानुवर्तमानस्याधिकरणशब्दस्य सामानाधिकरण्येन संबंध:निर्वर्तनवाधिकरणमित्यादि । यदा तु भावसाधनास्तदा वैयधिकरण्येन निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गलक्षणा भावाः परमजीवाधिकरणं विशिष्यन्तीत्यध्याह्रियमाणक्रियापदापेक्षया परशब्दस्य कर्मनिर्देशो व्याख्यायते । पूर्वसूत्रे प्राद्यमिति वचनादत्र सामर्थ्यात्तत्परत्वप्राप्तौ पुन: परवचनमनर्थकमिति चेत्तन्न
सत्रार्थ-दो निर्वर्तना के भेद, चार प्रकार निक्षेप, संयोग दो प्रकार का और निसर्ग तीन प्रकार का, इस तरह अजीवाधिकरण के भेद होते हैं ।
निर्वर्तना आदि शब्दों का कर्मसाधनरूप अर्थ कहते हैं-'निर्वय॑ते इति निर्वर्तना' अर्थात् निष्पादना 'निक्षिप्यते इति निक्षेपः' स्थापना को निक्षेप कहते हैं। 'संयज्यते इति संयोगः' मिलाने को संयोग कहते हैं । 'निसृज्यते इति निसर्गः' प्रवर्तन को निसर्ग कहते हैं। अथवा ये भाव साधन शब्द हैं–निर्वर्तनं निर्वर्तना। निक्षिप्तः निक्षेपः । संयुक्तिः संयोगः । निसृष्टि: निसर्गः ऐसी निरुक्ति है। प्रथम ही निर्वर्तना आदि पदोंका द्वन्द्व समास करना, पुनः द्वि आदि संख्या वाचक पदोंका द्वन्द्व समास करके बहब्रीहि समास द्वारा भेद शब्दको जोड़ना चाहिए । 'परं' शब्द से अजीवाधिकरण के ये भेद हैं ऐसा अर्थ समझना । निर्वर्तना आदि शब्दोंको कर्मसाधनरूप जब मानते हैं तब यहां वर्तमान अधिकरण शब्दके साथ उनका सामानाधिकरण होता है जैसे निर्वर्तना रूप अधिकरण है, निक्षेपरूप अधिकरण है इत्यादि । तथा जब ये निर्वर्तना आदि शब्द भावसाधनरूप होते हैं तब विशिष्यन्ति क्रिया का अध्याहार करके निर्वर्तना, निक्षेप, संयोग और निसर्ग लक्षणरूप भाव अजीवाधिकरण को विशिष्ट करते हैं ऐसा वैयाधिकरण-भिन्न अधिकरणरूप से अधिकरण शब्दका संबंध करना चाहिए। विशिष्यन्ति क्रिया के अध्याहार करने से 'परम्' ऐसा सूत्रोक्त कर्म निर्देश (द्वितीय विभक्ति) सफल होता है।