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षष्ठोऽध्यायः
[ ३५५ रूपाणि पंचेन्द्रियकषायाव्रतानि संक्षेपात्तु न योगाद्भिद्यन्ते । तदेवमिन्द्रियादीनि साम्परायिकस्य कर्मण प्रास्रवद्वाराण्युक्तानि । सांप्रतं सत्यपि प्रत्यात्मसम्भवे तेषां परिणामेभ्योऽनन्तविकल्पेभ्यो विशेष प्रदर्शयन्नाह
तीवमन्दज्ञाताऽज्ञातभावाधिकरणवीर्यविशेषेभ्यस्तद्विशेषः ॥६।। बाह्याभ्यन्तरहेतूदीरणवशादुद्रिक्तः परिणामस्तीवनात् स्थूलभावात्तीव्र इत्युच्यते । अनुदीरणप्रत्ययसन्निधानादुत्पद्यमानोऽनुद्रिक्तपरिणामो मन्दनाद्गमनान्मन्द इति कथ्यते । हिनस्मीत्यसति परिणामे प्राणव्यपरोपणे जाते सति मया व्यापादित इति ज्ञायते स्मेति ज्ञातमा ज्ञातम् । अथवाऽयं प्राणी हन्तव्य इति ज्ञात्वा प्रवृत्तितिमित्युच्यते । तद्विपरीतमज्ञातम् । तच्च प्रमादान्मदाद्वा प्रव्रज्यादिवनवबुध्य प्रवृत्तिरुच्यते। भावोऽत्र परिस्प-दरूपः कायादिक्रियालक्षण: परिणाम उच्यते । स च तीवादीनां विशेषकः सम्बन्धिभेदाद्भिद्यमानोऽनेकरूपो भवति । प्रयोजनानि पुरुषाणां यत्राऽधिक्रियन्ते
कथंचित् भेद है । क्रिया में प्रवृत्तिरूप हैं कार्यरूप हैं और उनके हेतुभूत इन्द्रिय, कषाय एवं अव्रत हैं अर्थात् क्रिया कार्य है और उनका कारण इन्द्रियां आदि हैं । ये सर्व मिल कर संक्षेपदृष्टि से योग स्वरूप हैं, उससे भिन्न नहीं हैं। इस तरह इन्द्रियां आदिक सांपरायिक कर्मके आसव के द्वार हैं।
अब यह बताते हैं कि प्रत्येक आत्मा में उन आसवों के परिणाम अनंत प्रकार के हैं फिर भी उनकी कुछ विशेषता है उसका सूत्र द्वारा प्रतिपादन करते हैं
सूत्रार्थ-तीव्रभाव, मन्दभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, अधिकरण और वीर्य इनकी विशेषता से उन आसवों में विशेषता आती है।
बाह्य और अभ्यन्तर कारण के मिलने से उद्रिक्त परिणाम, तीव्र-स्थूलभाव होना तीवभाव कहलाता है। उक्त कारणों के प्रगट न होने से अनुद्रिक्त परिणाम मंद भाव कहा जाता है । 'मैं मारता हूं' इसप्रकार के परिणाम नहीं होने पर प्राण व्यपरोपण हो जाने पर मेरे द्वारा यह पाता गया इस तरह पश्चात् जानने में आना ज्ञातभाव है, अथवा यह प्राणी मारने योग्य है ऐसा पहले जानकर उसमें प्रवृत्त होना ज्ञातभाव है। इससे विपरीतभाव अज्ञातभाव कहलाता है। इस तरह ज्ञात अज्ञात भावरूप प्रवृत्ति प्रमाद से या गर्व से अपनी दीक्षा आदि का लक्ष्य नहीं होने से हो जाती है। शरीर आदि की क्रिया युक्त परिस्पंदरूप परिणामको 'भाव' कहते हैं, तीव्र आदिका विशेषक है, सम्बन्धी के भेद से इसके अनेक भेद होते हैं । जहां पर पुरुषों के प्रयोजन प्रस्तुत किये