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________________ ३३४ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती कर्मसाधनोऽयं कथ्यते । द्रव्यमाश्रयो येषां ते द्रव्याश्रया द्रव्याधारा इत्यर्थः । गुणेभ्यो निष्क्रान्ता निर्गुणा इति-विशेषणं परमाणुकारणद्रव्याश्रयाणां द्वयणुकादिकार्यद्रव्याणां गुणव्यपदेशनिरासार्थमुपादीयते । द्वणुकादीनां हि रूपादयो गुणा: सन्तीति तन्निवृत्तिः कृता भवति । ननु तहि घटसंस्थानादीनां पर्यायाणामपि तदुभयलक्षणसद्भावाद् गुणत्वं प्राप्नोतीति । तन्न । किं कारणम् ? द्रव्याश्रया इत्यत्र नित्ययोगलक्षणे मत्वर्थेऽन्यपदार्थवृत्तिविधानात्पर्यायनिवृत्तेः। नित्यं द्रव्यमाश्रित्य ये वर्तन्ते ते गुणा भवन्तीति, पर्यायाः पुन: कादाचित्का इति न तेषां ग्रहणं स्यात् । तेनान्वयिनो धर्मा गुणा इत्युक्त भवति । तद्यथाजीवस्यास्तित्वामूर्तत्वासङ्खये यप्रदेशत्वकर्तृत्वभोक्तृत्वादयो ज्ञातृत्वद्रष्ट्रत्वचेतनत्वादयश्च सामान्यरूपा जाता है इस अर्थ में कर्म साधनरूप यह आश्रय शब्द निष्पन्न हुआ है । द्रव्य है आश्रयआधार जिनका वे 'द्रव्याश्रयाः' कहलाते हैं । गुणों से रहित निर्गुण हैं। परमाणुरूप कारण द्रव्यों के आश्रय में द्वयणुक आदि कार्य द्रव्य रहते हैं इस दृष्टि से स्कन्ध को भी गुणपने का प्रसंग आता है अत: 'निर्गुणा' ऐसा विशेषण दिया है । अभिप्राय यह है कि जो द्रव्यों के आश्रय में रहते हैं वे गण कहलाते हैं, गुणोंका इतना ही लक्षण किया जाय तो द्वयणुक आदि कार्य परमाणु आदि कारण के आश्रय में रहने से उन्हें भी गुण कहने का प्रसंग आता, उस प्रसंग का निवारण करने हेतु गण के लक्षण में 'निर्गुणा' विशेषण दिया है। शंका-ऐसा लक्षण भी सदोष है । देखो ! घट के संस्थान आदि के पर्यायों में भी 'द्रव्याश्रया निर्गणा गणाः' लक्षण पाया जाता है अतः उन पर्यायों को भी ग णत्व प्राप्त होता है । अर्थात् घटादिके आकार स्वरूप पर्यायें द्रव्य के आश्रय हैं एवं निर्गुण हैं अत: वे भी गुण कहलायेंगे ? समाधान-ऐसा नहीं कहना। 'द्रव्याश्रयाः' इस पद में नित्ययोग अर्थवाला मत्वर्थीय बहुब्रीहि समास किया जाता है जिससे वह लक्षण पर्याय में नहीं जाता। 'नित्यं द्रव्यं आश्रित्य ये वर्तन्ते ते गणाः जो नित्य हमेशा सतत् द्रव्य का आश्रय लेकर रहते हैं वे गण कहलाते हैं । ऐसा अर्थ करने पर यह लक्षण पर्यायों में नहीं जा सकता, क्योंकि पर्यायें द्रव्य में सतत् नहीं रहती, परिवर्तित हो होकर दूसरी दूसरी आती हैं अतः कादाचित्क हैं । इसीसे सिद्ध होता है कि द्रव्य में जो अन्वयी धर्म हैं वे गुण कहलाते हैं। अब आगे कौनसे द्रव्य में कौनसे गुण पाये जाते हैं उनका वर्णन करते हैंअस्तित्व, अमूर्त्तत्व, असंख्येय प्रदेशत्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व आदि तथा ज्ञातृत्व, द्रष्ट्रत्व, चेतनत्व इत्यादि जीव द्रव्य के सामान्य (तथा विशेष) गुण हैं। अचेतनत्वादि और
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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