SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ३३५ गुणाः । तथा पुद्गलस्याचेतनत्वादयो रूपादयश्च गुरणाः । पर्यायाः पुनर्जीवस्य घटज्ञानादयो गुणविकारा:, क्रोधादयश्च द्रव्यविकाराः हीनाधिक विशेषात्मना भिद्यमानाः । पुद्गलस्य वर्णगन्धादयस्तीव्र पंचमोऽध्यायः रूपादिक पुद्गल द्रव्यके गुण हैं । घटका ज्ञान पटका ज्ञान इत्यादि ज्ञानग ुण के विकार स्वरूप जीव के गणकी पर्यायें हैं । तथा हीन अधिकपने से भेदको प्राप्त क्रोध, मान आदि द्रव्य विकार स्वरूप भी जीवकी द्रव्य पर्यायें हैं । वर्ण गन्ध आदि का तीव्र मन्द आदि भावसे परिणमन होने के कारण भेद को प्राप्त हुए गुणों के विकार स्वरूप पुद्गल द्रव्यकी गणपर्याय होती हैं, तथा द्वयणुक आदि द्रव्यों के विकार स्वरूप पर्यायें भी पुद्गल की द्रव्य पर्यायें हैं ऐसा जानना चाहिए। इसी प्रकार धर्म, अधर्म आदि शेष द्रव्यों के ग ुण एवं पर्यायें आगमानुसार घटित कर लेना चाहिए । 1 विशेषार्थ - छह द्रव्य हैं जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म आकाश और काल । जीव और पुद्गल अनंतानंत प्रमाण हैं । धर्म, अधर्म और आकाश एक-एक संख्या में हैं काल द्रव्य असंख्यात हैं । जीव द्रव्य के एक-एक के अपने-अपने स्वतन्त्ररूप असंख्यात असंख्यात प्रदेश होते हैं । पुद्गल द्रव्य में जो अणु-परमाणु स्वरूप पुद्गल हैं उसमें एक प्रदेश है, और जो स्कन्धरूप पुद्गल द्रव्य हैं उस स्कन्धों के अनन्त भेद हैं, कोई स्कन्ध केवल दो प्रदेशी हैं, कोई तीन प्रदेशी इत्यादि अनंत प्रदेशी एवं अनंतानंत प्रदेश प्रमाण तक पुद्गलों के प्रदेश पाये जाते हैं । धर्म तथा अधर्म द्रव्य में असंख्यात प्रदेश हैं । आकाश में जो लोकाकाश है उसमें असंख्यात प्रदेश हैं और अलोकाकाश में अनन्तानन्त प्रदेश हैं । काल द्रव्य एक प्रदेशी हे । सामान्य ग ुण छह होते हैं जो सब द्रव्यों में समानरूप से पाये जाते हैं, वे ये हैं—अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रदेशत्व, प्रमेयत्व, अग रुलघुत्व, द्रव्यत्व । चेतनत्व ग ण केवल जीव द्रव्य में ही है । अचेतनत्व गण पुद्गलादि शेष पांच द्रव्यों में विद्यमान है । अमूर्त्तत्व पुद्गल को छोड़कर शेष पांच द्रव्यों में है । मूर्त्तत्व एक पुद्गल द्रव्य में है । जीव द्रव्य में ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य ये चार विशेष गुण हैं । पुद्गल द्रव्य रूप, रस, गन्ध और स्पर्श ये चार विशेष गुण होते हैं । धर्म द्रव्य में गति हेतुत्व, अधर्मद्रव्य में स्थिति हेतुत्व, आकाश द्रव्य में अवगाहन हेतुत्व और कालद्रव्य में ना हेतुत्व विशेष गुण रहते हैं । पर्याय के दो भेद हैं अर्थ पर्याय और व्यंजन पर्याय । एक समयवर्ती, अत्यंत सूक्ष्म, अग रुलघु गुण निमित्तक अर्थपर्याय होती है यह वचन के अगोचर होती है यह अर्थपर्याय छहों द्रव्यों में पायी जाती है । जो स्थूल है अनेक समयवर्ती है, वचन गोचर है वह व्यंजन पर्याय है, यह जीव और पुद्गल में पायी
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy