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पंचमोऽध्यायः
[ ३२३ स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्धः ॥ ३३ ॥ बाह्याभ्यन्तरकारणवशात्स्नेहपर्यायाविर्भावास्निह्यते स्मेति स्निग्धः । द्वितयहेतुवशाद्रूक्षणाद्रूक्ष इत्यभिधीयते । स्निग्धश्च रूक्षश्च स्निग्धरूक्षौ । तयोर्भाव: स्निग्धरूक्षत्वम् । स्निग्धत्वं चिक्करणत्वलक्षणः पर्यायः । तद्विपरीतः परुषत्वपरिणामो रूक्षत्वम् । स्निग्धरूक्षत्वादिति हेतुनिर्देशस्तत्कृतो बंधो द्वयणुकादिपरिणामः कथ्यते। द्वयोः स्निग्धरूक्षयोः परमाण्वोः परस्परश्लेषलक्षणे बंधे सति द्वयणुकस्कंधो भवति । एवं संखय यासंखघ यानन्तप्रदेशः स्कन्धो योज्यः । तत्राविभागपरिच्छेदैकगुणः स्नेहः प्रथमः । एवं द्वित्रिचतुस्सङ्खये यासङ्ख्य यानन्तगुणश्च स्नेहविकल्पश्च स्यात् । तथा रूक्षगुणोऽपि वेदितव्यः । तद्गुणाः परमाणवः सन्ति । यथा तोयाऽजागोमहिष्युष्ट्रीक्षीरघृतेषु स्नेहगुणः प्रकर्षाप्रकर्षभावेन वर्तते ।
होती है, और उनकी सिद्धि अर्पित अनर्पित से होती है। इससे नित्यत्व अनित्यत्वको एकत्र मानने में विरोध भी नहीं आता।
प्रश्न-निरंश परमाणुओं का परस्पर में संबंध किस कारण से होता है जिससे बना स्कन्ध वास्तविक सिद्ध हो ?
उत्तर-इसीको सूत्र द्वारा कहते हैंसूत्रार्थ-स्निग्ध और रूक्षत्व द्वारा बंध होता है ।
बाह्य और अभ्यन्तर कारणों के वश से स्नेह पर्याय आविर्भावरूप हुई थी उसे स्निग्ध कहते हैं । उन्हीं दो कारणों के वश से रूक्ष पर्याय प्रगट होने से रूक्ष कहा जाता है । स्निग्ध और रूक्ष के भावको स्निग्धरूक्षत्व कहते हैं। चिक्कणपर्याय स्निग्ध है
और उससे विपरीत परुषत्व परिणाम रूक्षत्व है। 'स्निग्धरूक्षत्वाद्' ऐसा हेतु परक निर्देश (पंचमी विभक्ति) सूत्र में किया है, उस स्निग्धत्वादि के निमित्त से बंध होता है, वह द्वयणुकादि परिणामरूप कहा जाता है । दो स्निग्ध और रूक्ष वाले परमाणुओं का परस्पर में उपश्लेषरूप बंध होने पर द्वयणुक स्कन्ध पैदा होता है । इस प्रकार संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेशोंवाला स्कन्ध उत्पन्न होता है ऐसा लगाना चाहिए। उनमें अविभाग परिच्छेद एक गुण स्नेह प्रथम है। इस प्रकार दो, तीन, चार संख्यात असंख्यात और अनंत गुणवाला स्नेह विकल्प है। इसी तरह रूक्षगुण जानना । उन गुण वाले परमाणु होते हैं । जैसे जल, बकरी का दूध, गाय का दूध, भैंस का दूध ऊंटनी का दूध और घी में स्नेह गुण प्रकर्ष अप्रकर्षभाव से रहता है अर्थात् जल से अधिक स्नेह