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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती भेदो द्रव्योत्पत्तिहेतुरेव न भवतीति युक्त वक्तु'–संयोगवत्तत्कारणत्वदर्शनात्तदन्वयव्यतिरेकानुविधानाकार्यद्रव्यस्य तथाप्रतीतेर्बाधकाभावाच्च । अत्र कश्चिदाह-धर्मादीनां द्रव्याणां विशेषलक्षणान्युक्तानि। सामान्यलक्षणं तु नोक्तम् । तदिदानीं वक्तव्यमित्यत्रोच्यते
सद्रव्यलक्षणम् ॥ २६ ॥ • यत्सत्तद्रव्यलक्षणं भवति । यद्येवं प्राप्तमिदं सतः किं लक्षणमित्युच्यते
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत् ॥ ३०॥
उपलभ्य नहीं हो सकता, जैसे बहुत से गूढ रस में अल्पतम सुवर्ण है तो वह भेद के अभाव के कारण उपलब्ध नहीं होता।
भेद को द्रव्य की (स्कंध की) उत्पत्ति में कारण ही नहीं माना जाता है ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि जैसे संयोग द्रव्योत्पत्ति का कारण देखा जाता है वैसे भेद भी कार्यद्रव्य का अन्वय व्यतिरेक रूप अनुविधान करता है अर्थात् भेद होने पर स्कंध होना और भेद न होने पर नहीं होना इस प्रकार का अनुविधान कार्य द्रध्य (स्कंध) के साथ भेद का भी पाया जाता है, क्योंकि वैसी प्रतीति होती है एवं इसमें कोई बाधा भी नहीं है । अभिप्राय यह है कि जैसे संघात से स्कन्धोत्पत्ति होती है वैसी भेद से भी स्कन्धोत्पत्ति होती है इसमें कोई बाधा नहीं है।
शंका-धर्म आदि द्रध्यों के विशेष २ लक्षण तो कह दिये किन्तु उनका सामान्य लक्षण नहीं कहा है ? उसको अब कहना चाहिए ?
समाधान-उसीको आगे सूत्र में कहते हैंसूत्रार्थ-धर्मादि द्रव्यों का लक्षण सत् है । जो सत् है वह द्रव्य का लक्षण है । प्रश्न-यदि ऐसी बात है तो यह बताइये कि सत् का लक्षण कौनसा है ?
उत्तर-सूत्र द्वारा बतलाते हैं
सूत्रार्थ-सत् का लक्षण उत्पाद व्यय और ध्रौव्य से युक्त होना है ।