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पंचमोऽध्यायः
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इत्यनेनैवाणोर्भेदादुत्पत्तौ सिद्धायां पुनर्वचनमवधारणार्थं भवति - भेदादेवाणुर्न संघातान्त्रापि भेदसंधाताभ्यामिति । संघातादेव स्कन्धानामात्मलाभे सिद्ध भेदसंघातग्रहणस्यानर्थक्यप्रसङ्गो तत्प्रयोजनप्रतिपत्त्यर्थमिदमुच्यते
भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषः ॥ २८ ॥
भेदश्च संघातश्च भेदसंघातौ तुल्यकाली । ताभ्यां भेदसंघाताभ्याम् । चक्षुषा ग्राह्यश्चाक्षुषो दृश्य इति यावत् । अनन्तानन्तपरमाणुसमुदयनिष्पाद्योऽपि स्कन्धः कश्चिच्चाक्षुषः कश्चिच्चाचाक्षुषो भवति । तत्राचाक्षुषोऽपि कश्चिद्भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषो जायते । कात्रोपपत्तिरिति चेदुच्यते सूक्ष्मपरिणामस्य स्कन्धस्य भेदे सौक्ष्म्यापरित्यागादचाक्षुषत्वमेव । सूक्ष्मपरिणतः पुनरपरः सत्यपि तद्भेदे संघातान्तरसंयोगात्सौक्ष्म्यपरिणामोपरमे स्थौल्योंत्पत्तौ दृश्यों भवति । भिन्नकाले तु स्थूलस्कन्धस्य भेदोऽपि दृश्यत्वहेतुः प्रागेवोक्तः प्रभूतरसगृहीताल्पतमहेमवत् भेदाभावे तदुपलभ्यत्वाभावात् । न च
ही अणु की उत्पत्ति भेद से होती है यह सिद्ध था फिर भी पुन: यह सूत्र आया है वह अवधारण हेतु ही आया है । जिससे यह निर्णय होता है कि अणु की उत्पत्ति भेद से ही होती है, वह न संघात से होती हैं और न भेद संघात से होती है । स्कन्धों की उत्पत्ति संघात से होती हैं, अत: भेद संघात पद का ग्रहण व्यर्थ होने का प्रसंग आने पर उस पद का प्रयोजन बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं
सूत्रार्थ - चाक्षुष स्कन्ध भेद संघात से उत्पन्न होता है ।
भेद संघात पदों में द्वन्द्व समास है । ये भेद संघात एक साथ होकर स्कन्ध बनता है । नेत्र द्वारा जो ग्राह्य - दृश्य हो उसे चाक्षुष कहते हैं । अनन्तानन्त परमाणुओं के समुदाय से निष्पन्न हुआ भी कोई स्कन्ध चाक्षुष होता है और कोई स्कंध अचाक्षुष होता है । उनमें जो अचाक्षुष स्कंध है वह भेद और संघात द्वारा चाक्षुष बन जाता है । इसमें क्या उपपत्ति है सो बताते हैं- सूक्ष्म परिणाम वाले स्कंध का भेद हो जाने पर उसके सूक्ष्मता का त्याग नहीं होता अतः वह अचाक्षुष ही बना रहता है, अब वह सूक्ष्म परिणत हुआ एक अन्य रूप स्कंध माना जायगा । उसमें अन्य किसी स्कंध का संघात हुआ तथा उसने अपने सौक्ष्म्य को छोड़ दिया तब जाकर स्थूलता की उत्पत्ति हो जाने से वह स्कंध चाक्षुष या दृश्य बनता है । भिन्नकाल में यदि स्कंध का भेद होता है तो उससे भी दृश्य - चाक्षुष बनता है ( क्योंकि वह पहले भी चाक्षुष ही था ) इस प्रकार का भेद से होने वाले चाक्षुष स्कंध का प्रतिपादन पहले के ( २६वें ) सूत्र में ही कर दिया है । यदि कोई स्कंध सूक्ष्म या अचाक्षुष है और उसमें भेद नहीं किया जाता तो वह