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पंचमोऽध्यायः
[ ३१५ श्चतुस्त्रिद्वय कगुणाः पार्थिवादिजातिभिन्ना इति । तत्र स्कन्धानां तावदुत्पत्तिहेतुप्रतिपादनार्थमाह
भेवसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते ॥ २६ ॥
__ बाह्याभ्यन्तरविपरिणामकारणसन्निधाने सति संहतानां स्कन्धानां विदारणं भेदः । पृथग्भूतानामेकत्वापत्तिः संघात इति कथ्यते । भेदसंघातयोद्वित्वाद्विवचनेन भवितव्यमिति चेत् तन्न-बहुवचनस्यार्थविशेषज्ञापनार्थत्वात् । अतो भेदेन संघातो भेदसंघात इत्यस्यापि ग्रहणं सिद्ध भवति । उत्पूर्वः पदित्यिर्थो द्रष्टव्यः । उत्पद्यन्ते जायन्त इति यावत् । तदपेक्षो भेदसंघातेभ्य इति हेतुनिर्देशः । भेदासंघाताद्भेदसंघाताभ्यां च स्कन्धा उत्पद्यन्ते । तद्यथा-द्वयोः परमाण्वोः संघाताद्विप्रदेशः स्कन्ध
पृथिवी जल से विद्युतरूप अग्नि उत्पन्न होती है । अतः टीकाकार ने उक्त मान्यता का निरसन कर कहा है कि पृथिवी आदि सर्व स्कन्धरूप पुद्गल द्रव्य है स्वतन्त्र तत्त्व नहीं है।
अब यहां पर स्कन्धों की उत्पत्ति का कारण बताते हैंसूत्रार्थ-स्कन्ध भेद से, संघात से और भेद संघात से उत्पन्न होते हैं ।
बाह्य और अभ्यन्तर परिणमन के कारण मिलने पर संहत स्कन्धों का विदारण होना भेद है । पृथक्भूत परमाणु या स्कन्धों का मिलना संघात है ।
शंका-भेद और संघात ये दो हैं अतः सूत्र में 'भेद संघाताभ्यां' ऐसा द्विवचन होना चाहिए ?
समाधान-ऐसा नहीं कहना, विशेष अर्थ का ज्ञापन कराने हेतु बहुवचन दिया है । वह विशेष अर्थ यह है कि भेद होकर संघात होना और उससे स्कन्ध उत्पन्न होना यह भी एक स्कन्ध उत्पत्ति का प्रकार है, अर्थात् कोई स्कन्ध है, उसमें से कुछ अंश का भेद-विदारण हुआ पुनः उसमें कुछ अंश का मिलना संघात हुआ इस तरह भेद और संघात दो प्रक्रिया से भी स्कन्ध उत्पन्न होता है । यह स्कन्ध उत्पत्ति का तीसरा प्रकार है उसके ग्रहण करने के लिये सूत्र में बहुवचन का प्रयोग हुआ है । उत् उपसर्ग युक्त पदि धातु उत्पन्न होने से अर्थ में उत्पद्यन्ते जायन्ते-उत्पन्न होते हैं ऐसा अर्थ जानना । उस अर्थ में 'भेद संघातेभ्यः' इस तरह हेतु निर्देश-पंचमी विभक्ति हुई है । भेद से संघात से और भेद संघात से स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। अब इसीको बताते हैं-दो