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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती चेदुच्यते-अणूनामस्तित्वं कार्यलिङ्गत्वात्-कार्यलिङ्ग हि कारणमिति वचनात् । परमाणूनामभावे शरीरेन्द्रियमहाभूतादिलक्षणस्य कार्यस्य प्रादुर्भावाघटनात् । तथा चोक्तम्
कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः ।
एकरसवर्णगन्धो द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ।। इति ।। अथ के स्कन्धाः ? वक्ष्यमाण बन्धं परिप्राप्ता येऽणवस्ते स्कन्धा इति व्यपदिश्यन्ते । ते च त्रिविधाः-स्कन्धाः स्कन्धदेशाश्च स्कन्धप्रदेशाश्चेति । तत्रानन्तानन्तपरमाणुबन्धविशेषः स्कन्धः । तदर्धं देशः । अर्धाधु प्रदेशः। तद्भेदाः पृथिव्यप्तेजोवायवः स्पर्शादिशब्दादिपर्यायाः प्रसिद्धाः न पुन
उत्तर-अणुओं का अस्तित्व कार्य लिंग से ज्ञात होता है। क्योंकि 'कार्यलिंगं हि कारणम्' कार्य के लिंग से कारण जाना जाता है, अर्थात् कार्य को देखकर कारण का अनुमान सहज ही हो जाया करता है । देखिये ! यदि परमाणु नहीं होवे तो शरीर, इन्द्रियां, महाभूत-पृथिवी, जल, अग्नि और वायु रूप जो कार्य दिखायी देते हैं उन कार्यों की उत्पत्ति हो नहीं सकती थी। कहा भी है जो अन्त्य सूक्ष्म है, नित्य है, वह कारण परमाणु ही है, वह परमाणु एक रस, गन्ध वर्ण वाला तथा दो स्पर्श वाला होता है एवं कार्य लिंग से ज्ञात होता है ।।१।। .. प्रश्न-स्कन्ध कौनसे हैं ?
उत्तर-आगे कहे जाने वाले बन्ध को जो अणु प्राप्त हो चुके हैं वे स्कन्ध कहलाते हैं । वे तीन प्रकार के हैं-स्कन्ध, स्कन्ध देश और स्कन्ध प्रदेश । उनमें जो अनंतानंत परमाणओं का बन्ध विशेष है वह स्कन्ध है । उस स्कन्ध का आधा स्कन्धदेश कहलाता है और स्कन्धदेश का आधा भाग स्कन्धप्रदेश कहा जाता है । इनके ही पृथिवी, जल, अग्नि और वायु ये भेद हैं तथा स्पर्शादि गुण युक्त शब्दादि प्रसिद्ध पर्यायें भी स्कन्ध ही हैं । चार गुण वाली पृथिवी जाति है, तीन गुण वाली जल जाति, दो गुण वाली अग्नि जाति और एक गुण वाली वायु जाति है ऐसा कथन असत्य है। भाव यह है कि नैयायिक आदि परवादियों के यहां पृथिवी आदि पृथक्-पृथक् चार जातियां मानी हैं, परमाणुओं में भी जातियां हैं। पार्थिव जाति के परमाणुओं से पृथिवी तत्त्व बनता है, जल जाति के परमाणुओं से जल तत्त्व बनता है इत्यादि । ऐसा उनका कहना है किंतु यह मान्यता प्रत्यक्ष से ही बाधित होती है, देखा जाता है कि जल बिंदु से मोती रूप