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________________ पंचमोऽध्यायः नाभिसम्बन्धः कर्तुं न शक्यते । तत्र परमाणुः केनचित्प्रकारेण कार्यरूपो भेदादणुरिति वक्ष्यमाणत्वात् । द्वयणुकादिकार्यस्य हेतुत्वात्कारणरूपश्च भवति । द्रव्यार्थतया व्ययोदयाभावात्स्यानित्यः । स्नेहादिविपरिणामाभ्युपगमात्स्यादनित्यश्च । तथा व्यक्तिरूपेणैकरस एकवर्ण एकगन्धश्च परमाणुर्वेदितव्यो निरवयवत्वात् । सावयवानां हि मातुलुङ्गादीनामनेकरसत्वं दृश्यते । अनेकवर्णत्वं च मयूरादीनाम् । अनेकगन्धत्वं च पवनादीनाम् । निरवयवश्चाणुस्तस्मादेकरसवर्णगन्धो भवति । द्विस्पर्शश्चाणुरवगन्तव्यो विरोधाभावात् । को पुनद्वौं स्पर्टी ? शीतोष्णस्पर्शयोरन्यतरः स्निग्धरूक्षयोरन्यतरश्च एकः प्रदेशत्वाद्विरोधिनोर्युगपदनवस्थानात् । गुरुलघुमृदुकठिनस्पर्शानां तु परमाणुष्वभाव: स्कन्धविषयत्वात् । शक्तिरूपेण तु सर्वेऽपि रसादयः सन्ति । कथं पुनस्तेषामणूनामत्यन्तपरोक्षाणामस्तित्वमवसीयते ? इति सूत्र इन दोनों का इस सूत्र के साथ संबंध सिद्ध करने हेतु 'अणवः स्कंधाश्च' ऐसा भिन्न विभक्ति परक निर्देश किया है। यदि यहां समासान्त पद बनाते तो समुदाय अर्थ होने से भिन्न-भिन्न अवयव (अणु अवयव और स्कंध अवयव) अर्थ का अभाव होने से क्रमशः भेद संबंध नहीं कर पाते । अब परमाणु का वर्णन करते हैं-परमाणु किसी एक प्रकार से कार्यरूप होता है 'भेदादणुः' ऐसा आगे सूत्र कहेंगे। वही परमाणु द्वयणुक आदि कार्य का हेतु होने से कारणरूप भी होता है । ये परमाणु द्रव्य दृष्टि से उत्पाद व्यय रहित हैं अतः नित्य कहलाते हैं और स्नेह आदि गुणरूप परिणमन करते हैं अतः कथंचित् अनित्य हैं । तथा एक परमाणु में व्यक्त रूप से एक रस, एक वर्ण, एक गन्ध ( और दो स्पर्श ) होता है क्योंकि वह अवयव रहित है। सावयवभूत जो मातुलुग फलादि पुद्गल स्कन्ध होते हैं उनमें अनेक रस पाये जाते हैं और मयूर आदि में अनेक वर्ण पाये जाते हैं । वायु आदि में अनेक गंध हैं । परमाणु अवयव रहित है अतः उसमें एक रस, एक गंध, एक वर्ण होता है। किन्तु इसमें स्पर्श दो रहते हैं, क्योंकि दो स्पर्श रहने में विरोध नहीं आता । वे दो स्पर्श कौनसे हैं ऐसा प्रश्न होने पर बताते हैं कि शीत और उष्ण में से कोई एक तथा स्निग्ध और रूक्ष में से कोई एक स्पर्श होता है। यह परमाणु एक प्रदेशी है अतः इसमें विरोधी स्पर्शादि गुण एक साथ नहीं रहत । गुरु, लघु, मृदु और कठिन इन चार स्पर्श गुणों का तो परमाणु में अभाव है क्योंकि ये गुण स्कन्ध में संभव हैं। ऊपर जो परमाणुओं के गुण बताये वे व्यक्तता की अपेक्षा बताये हैं। शक्ति की अपेक्षा सभी रसादि गुण परमाणु में होते हैं । प्रश्न-वे अणु अत्यन्त परोक्ष हैं इसलिए उनका अस्तित्व कैसे जाना जाय ?
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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