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पंचमोऽध्यायः
[ ३०९ संस्कृतेतरभेदादार्यम्लेच्छव्यवहारहेतुः । अवर्णात्मको द्वीन्द्रियादीनामतिशयज्ञानस्वरूप प्रतिपादनहेतुः । स एव भाषात्मक: सर्वोऽपि पुरुषप्रपत्नापेक्षित्वात्प्रायोगिकः । अभाषात्मको द्वैधा-प्रयोगविस्रसानिमित्तभेदात् । तत्र वैससिको मेघादिप्रभवः । प्रयोगश्चतुर्धा-ततविततघनसौषिरभेदात् । तत्र चर्माततनात्ततः पुष्करभेरीदर्दुरादिप्रभवः । विततस्तन्त्रीकृतो वीणासुघोषादिसमुद्भवः । घनस्तालघण्टालालनाद्यभिघातजः । सौषिरो वंश शङ्खादिहेतुकः। एवं च सत्याकाशगुणः शब्द इति परमतं निराकृतं भवति । बन्धोऽपि द्वेधा-वैससिकः प्रायोगिकश्चेति । तत्र पुरुषप्रयोगानपेक्षो वैससिको यथा स्निग्ध. रूक्षत्वगुण निमित्तो विधुदुल्काजलधराग्नीन्द्रधनुरादिविषयः । पुरुषप्रयोगनिमित्तः प्रायोगिकः। स चाऽजीवविषयो जीवाजीवविषयश्चेति द्विधा भिद्यते । तत्राजीवविषयो जतुकाष्ठादिलक्षणः । जीवाजीवविषयः कर्म नोकर्मबन्धः । सौक्षम्यं द्विविधमन्त्यमापेक्षिकं चेति । तत्रान्त्यं परमाणु नाम् । प्रापेक्षिक
और असंस्कृतरूप भेद हैं जो कि आर्य और म्लेच्छ के व्यवहार के हेतु हैं । अवर्णात्मकअनक्षर कृत शब्द द्वीन्द्रियादि के होता है जो उनके अतिशय ज्ञान के प्रतिपादन का हेतु है।
इस प्रकार यह सर्व भाषात्मक शब्द पुरुष के (जीव के) प्रयत्न की अपेक्षा से होता है अतः प्रायोगिक कहलाता है । अभाषात्मक शब्द भी दो प्रकार का है प्रायोगिक
और वैनसिक । मेघ आदि से उत्पन्न हुआ शब्द वैस्रसिक है । प्रयोग से होने वाला प्रायोगिक शब्द चार प्रकार का है-तत, वितत, घन और सुषिर । चर्म के तनने से जो उत्पन्न होता है वह तत शब्द है जैसे भेरी, ढोल, नगाड़ा आदि की ध्वनि । तार से निकली ध्वनि वितत शब्द है जैसे वीणा, सितार आदि की ध्वनि । ताल घंटा आदि के बजाने से उत्पन्न हुई ध्वनि घन है। बांसुरी, शंख आदि की ध्वनि सौषिर शब्द है। इस प्रकार के कथन से शब्द को आकाश का गुण मानने वाले पर मतका खण्डन हो जाता है।
बन्ध भी दो प्रकार का है-वैस्रसिक और प्रायोगिक । उनमें जो पुरुष प्रयोग की अपेक्षा नहीं रखता वह वैस्रसिक बन्ध है। जैसे स्निग्ध रूक्षत्व गुण के निमित्त से विद्युत, उल्का, मेघ, इन्द्रधनुष आदि बनते हैं ये सर्व वैस्रसिक बंध स्वरूप हैं । जो पुरुष प्रयोग के निमित्त से होता है वह प्रायोगिक बंध है। यह प्रायोगिक बंध भी दो प्रकार का है-अजीव विषयक और जीवाजीव विषयक । लाख लकड़ी आदि के संबंधरूप अजीव बंध है। कर्म नोकर्म का जीव के साथ जो संबंध है वह जीवाजीव बन्ध है । सौक्षम्य दो प्रकार का है-अन्त्य और आपेक्षिक । अन्त्य सौक्षम्य परमाणुओं में होता है ।