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________________ ३०८ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती शपत्यर्थमाह्वयति प्रत्यापयति शप्यते येन शपनमात्र वा शब्दः । बध्नाति बध्यतेऽसौ बध्यतेऽनेन बन्धनमात्रं वा बन्धः । केन चिल्लिङ्ग नात्मानं सूचयति सूच्यतेऽसौ सूच्यतेऽनेन सूचनमात्रं वा सूक्ष्मः । सूक्ष्मस्य भावः कर्म वा सौक्ष्म्यम् । स्थूलयते परिबृहयति स्थूल्यतेऽसौ स्थूल्यतेऽनेन स्थूलनमानं वा स्थूलः । स्थूलस्य भावः कर्म वा स्थौल्यम् । सन्तिष्ठते संस्थीयतेऽनेनेति संस्थितिर्वा संस्थानम् । भिनत्ति भिद्यते भेदनमात्रं वा भेदः । पूर्वोपात्ताऽशुभकर्मोदयवशाताम्यत्यात्मा तम्यतेऽनेन तमनमात्रं वा तमः । पृथिव्यादिधनपरिणाम्युपश्लेषाद्दे हादिप्रकाशावरणतुल्याकारेण च्छिद्यते छिनन्यात्मानमिति वा छाया। असद्वेद्योदयादातपत्यात्मान मातप्यतेऽनेनातपनमा वाऽऽतपः । निरावरणमुद्योतयत्युद्योत्यतेऽनेनोद्योतनमात्रं वा उद्योतः । शब्दश्च बन्धश्च सौक्ष्यं च स्थौल्यं च संस्थानं च भेदश्च तमश्च च्छाया च पातपश्च उद्योतश्च शब्दबन्धसौक्ष्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतास्ते येषां सन्ति ते शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवन्तः पुद्गला इत्यभिसम्बध्यते । तत्र शब्दो द्वेधा-भाषात्मकेतरभेदात् । तत्र भाषात्मकोऽपि द्वेधा-अक्षरीकृतानक्षरीकृतविकल्पात् । तत्राक्षरीकृतः शास्त्राभिव्यंजक: जो अर्थ को कहता है, प्रतीति कराता है, जिसके द्वारा कहा जाता है अथवा कहना मात्र 'शब्द' है। बांधता है, बंधा जाता है अथवा बंधना मात्र बन्ध है। किसी चिन्ह से जो अपने को सूचित करता, सूचित किया जाता है या सूचनामात्र है वह सूक्ष्म है । सक्ष्म के भाव या कर्म को सौक्ष्म्य कहते हैं । स्थूल होता है स्थूल किया जाता है अथवा स्थूल होना मात्र स्थूल है स्थूल के भाव या कर्म को स्थौल्य कहते हैं। ठहरता है स्थित होता है जिसके द्वारा अथवा स्थित होना मात्र संस्थान है। भिन्न होता है भेदा जाता है या भेदन मात्र भेद है। पूर्व के अशुभ कर्म के उदय से आत्मा खिन्न होता है या जिसके द्वारा दुःखी किया जाता है अथवा खेद मात्र तम कहलाता है । पथिवी आदि ठोस पदार्थ के सम्बन्ध से शरीरादि के प्रकाश आवरण के समान आकार से जो अपने को परिच्छिन्न करती है वह छाया है । असाता वेदनीय कर्म के उदय से जो अपने को तपाता है या तपना मात्र आतप है। निरावरण रूप से प्रकाशित करता है, प्रकाशित किया जाता है अथवा प्रकाश मात्र उद्योत है । यह शब्द बन्ध आदि पदों का निरुक्ति परक अर्थ है । इनमें द्वन्द्व समास है । शब्द बन्ध आदि हैं जिनके वे शब्द बन्ध इत्यादि पर्याय वाले पुद्गल हैं ऐसा सम्बन्ध कर लेना चाहिए। शब्द दो प्रकार का है भाषात्मक और अभाषात्मक उनमें भाषात्मक के दो भेद हैं, अक्षर कृत, अनक्षर कृत । शास्त्र का अभिव्यंजक शब्द अक्षरीकृत है इसके संस्कृत
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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