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पंचमोऽध्यायः
[ ३०७ तु सूत्रं परमतनिराचिकीर्षया पृथिव्यादीनां सर्वेषां पुद्गलजातिविशेषाणां प्रत्येक रूपादिचतुष्टयं साधारणं स्वरूप मित्येतस्यार्थस्य प्रतिपादनार्थं कृतम् । परमते हि स्पर्शरसगन्धवर्णवती पृथिवी । स्पर्शरसवर्णवत्य प्रापः । स्पर्शवर्णवत्तेजः। स्पर्शवानेव वायुरिति चतुस्त्रिद्वय कगुणा जात्यन्तरत्वेन स्थिताः पृथिव्यादय इत्युक्तम् । तच्च युक्तयाऽनुपपन्नमिति स्वपक्षसाधनद्वारेण निराक्रियते । तथा ह्यापो गन्धवत्यस्तेजो गन्धरसवत् । वायुर्गन्धरसवर्णवान् स्पर्शवत्वात्पृथिवीपर्यायवदिति । एवमुक्ततावद्युक्तिबलात्पृथिव्यादीनां पुद्गलपर्यायत्वं पुद्गलानां च स्पर्शादिसाधारणगुणत्वम् । इदानीमसाधारणपर्याययोगिनः पुद्गलानाह
शब्दबन्धसौक्षम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च ॥२४॥
था । उसका निराकरण करने के लिये रूपिणः पुद्गलाः सूत्र आया था। यह सूत्र तो परवादी के मतका निरसन करने हेतु प्रयुक्त हुआ है । आगे इसी को कहते हैं-पृथिवी आदि सभी पुद्गल जाति विशेषों में प्रत्येक में रूप आदि चारों गुण साधारण स्वरूप हैं, इस अर्थ का प्रतिपादन करने हेतु यह सूत्र आया है। देखिये ! परमत में ( नैयायिक वैशेषिक) पृथिवी स्पर्श, रस, गन्ध वर्ण वाली मानी है। जल में तीन ही गुण माने हैं स्पर्श, रस और वर्ण । गन्ध को जल में नहीं माना है । तेज में स्पर्श और वर्ण ही माना है एवं वायु में तो केवल एक स्पर्श ही स्वीकार किया है। इस तरह चार, तीन, दो
और एक गुण वाले ये पृथिवी आदि पदार्थ सर्वथा भिन्न जातीय हैं ऐसी इनकी मान्यता है, किन्तु यह सर्व युक्ति संगत नहीं है। इस बातको अपने पक्षकी सिद्धि द्वारा परका मत निराकरण कर बतलाया है। अनुमान से सिद्ध होता है कि जलादि सब पदार्थ स्पर्शादि चारों गुणों से युक्त हैं । देखिये ! जल गंध वाला है क्योंकि उसमें स्पर्शादि पाये जाते हैं, तेज में (अग्नि में) भी स्पर्शादि चारों होने ही चाहिए क्योंकि उसमें स्पर्श और वर्ण हैं। वायु भी गंधरस वर्ण वाली है, क्योंकि स्पर्श युक्त है, ये सर्व ही पृथिवी के समान ही हैं। इस तरह युक्ति बल से पृथिवी आदि के पुद्गल पर्यायत्व सिद्ध होता है, तथा पुद्गलों में साधारण रूप स्पर्शादि चारों गुण विद्यमान हैं यह निश्चित होता है ।
अब इस वक्त असाधारण पर्याय वाले पुद्गलों का कथन करते हैं
सूत्रार्थ-शब्द, बन्ध, सौम्य, स्थौल्य, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत वाले भी पुद्गल होते हैं।