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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती क्रियाविशेषस्याऽविच्छेदो जीवितमिति परिभाष्यते । तस्यैव जीवितस्योच्छेदो जीवस्य मरणमित्युच्यते । सुखं च दुःखं च जीवितं च मरणं च सुखदुःखजीवितमरणानि । तान्येवोपग्रहः कार्य सुखदुःख जीवितमरणोपग्रहः । केषामिति प्रश्ने पुद्गलानामिति प्रकृतमेवाभि सम्बन्ध्यते । यदा सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्चेति पाठान्तरं तदा सुखादीन्युपग्रहो येषां ते सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहा इत्यर्थवशाद्विभक्तिपरिणामेन सदसद्वद्यायुःकर्मपुद्गलाः सुखाद्युपग्रहाश्च भवन्तीति व्याख्यायते । ननु प्रकृतमुपग्रह वचनमस्ति तेन शरीरवाङ मनःप्राणापानरचेतनः सुखदुःखजीवितमरणैश्च चेतनात्मकैः कार्यविशेषैः पुद्गला जीवानुपगृह्णन्तीत्यस्मिन्नर्थे प्रतिपादिते पुनरुपग्रहवचनमनर्थकमिति चेत्तन्न । किं कारणम् ? पुद्गलानां परस्परोपग्रहप्रदर्शनार्थत्वात् । यथा धर्माधर्माकाशानि परेषामेवोपग्रहं कुर्वन्ति न तथा पुद्गलाः । किं तर्हि-पुद्गलानां च पुद्गलकृत उपकारोऽस्तीति प्रतिपादनार्थं पुनरुपग्रहवचनं कृतम् ।
विच्छेद नहीं होना जीवित है । उसी जीवित का उच्छेद होना जीवका मरण है । सुखादि पदों में द्वन्द्व समास करके उपग्रह शब्द के साथ कर्म धारय समास किया गया है। ये उपग्रह किनके हैं ऐसा प्रश्न होने पर पुद्गलों के हैं ऐसा प्रकृत का सम्बन्ध कर लेते हैं ।
जब "सुखदुःख जीवित मरणोपग्रहाश्च" ऐसा सूत्र पाठान्तर मानते हैं तो सुख दुःखादिक उपग्रह हैं जिनके वे "सुख दुःख जीवित मरणोपग्रहाः" ऐसा बहुब्रीहि समास होगा । अर्थ के वश से विभक्ति का परिणमन होने से साता असाता वेदनीय कर्म तथा आयु कर्म रूप जो पुद्गल हैं वे सुख आदिक उपग्रह स्वरूप होते हैं ऐसा अर्थ होगा।
शंका-उपग्रह का प्रकरण है अतः शरीर वाग् मन प्राण अपान रूप अचेतन कार्य तथा सुख दुःख, जीवित और मरण रूप चेतनात्मक कार्य विशेष द्वारा पदगल द्रव्य जीवों का अनुग्रह करते हैं ऐसा अर्थ सिद्ध होता है, इसलिये इस सूत्र में उपग्रह शब्द लेना व्यर्थ है ?
समाधान-ऐसा कहना ठीक नहीं है । पुद्गलों का परस्पर में उपग्रह होता है इस बात को बतलाने के लिये पुन: उपग्रह शब्द का ग्रहण हुआ है। जैसे धर्म अधर्म और आकाश द्रव्य परका ही उपग्रह करते हैं वैसा पुद्गल द्रव्य नहीं है किन्तु पद्गलों का भी पुद्गल उपकार करता है इस बात को बतलाने के लिये पुनः उपग्रह पद आया है । पुद्गल पुद्गलों का उपकार कैसे करते हैं सो ही बताते हैं-राख मिट्टी आदि पुद्गल द्वारा कांसे पीतल आदि के बर्तन आदि पुद्गल रूप पदार्थों का उपकार होता