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________________ श्रुतज्ञान अवधिज्ञान पांच मूल भाव भावों के उत्तर भेद विषय उपशम भाव क्षायिक भाव क्षयोपशम भाव श्रदयिक भाव पारिणामिक भाव जीव का लक्षण उपयोग के भेद जीव के भेद सैनी सैनी संसारी के भेद .... गुणप्रत्यय अवधि मन:पर्ययज्ञान मनः पर्यय ज्ञानों में परस्पर विशेष मन:पर्यय और अवधि में विशेषता मति और श्र ुत का विषय निबंध अवधि का विषय मन पर्यय का विषय केवलज्ञान का विषय .... एक साथ होने वाले ज्ञान [ एक ज्ञान होवे तो केवलज्ञान अथवा मतिज्ञान ] तीन ज्ञानों में विपर्यय ज्ञानों में मिथ्यापन नैगमादि सात नय नयों के चार्ट .... Dece **** .... .... .... [ सर्वावधि का विषय महास्कन्ध है ] .... .... द्वितीय श्रध्याय 0000 .... www. .... ( २१ ) www. .... .... .... www. ... .... .... .... .... .... .... .... .... .... 0000 0000 03.0 .... सूत्र २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ३२ ३३ २ ४ ५ ९ १० ११ १२ पृष्ठ x x x x x ४२ ४५ ४६ ४८ ४९ ५१ ५२ ५३ ५३ ५४ ५५ ५.६ ५७ ५८ /७१ ७२/७३ ७५ ७८ ७८ ८० ८१ ८३ ८४ ८५ ८६ ८७ ९० ९१
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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