________________
२९४ ]
सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती
द्रव्यमनश्चेति । भावमनो लब्ध्युपयोगलक्षणं चेतनपर्याय: । तदपि पुद्गलात्मक मनोवर्गगालम्बनत्वा पौद्गलिकम् । द्रव्यमनश्च ज्ञानावरणवीर्यान्तरायक्षयोपशमलाभप्रत्यया गुणदोषविचारस्मरणादि प्रणिधानाभिमुख्यस्यात्मनोऽनुग्राहकाः पुद्गलावीर्यविशेषावर्जनसमर्थाः मनस्त्वेन परिणता इति कृत्वा पौद्गलिकम् । किंच द्रव्य मनः पुद्गलकार्यं द्रव्यकरणत्वेन ज्ञानसाधनत्वाच्चक्षुरादिवदिति । युक्ति"बलाच्चास्य पौद्गलिकत्वसिद्धिः । वीर्यान्तरायज्ञानावरणक्षयोपशमाङ्गोपाङ्गनाम कर्मोदयापेक्षेणात्मना उदस्यमानः कोष्ठ्यो वायुरुच्छ्वासलक्षणः प्रारण इत्युच्यते । तेनैवात्मना बाह्यो वायुरभ्यन्तरीक्रियमारणो निःश्वास लक्षणोऽपान इत्याख्यायते । एतावप्यात्मानुग्राहिणौ जीवितहेतुत्वात् । तथा मनसः प्रारणापानयोश्च मूर्तिमत्वं प्रतिघातादिदर्शनात् । मनसस्तावत्प्रतिभयहेतुभिरशनिशब्दादिभिः प्रतिघातो दृश्यते सुरादिभिश्चाभिभवः । हस्तपादादिभिरास्यसंवरणात्प्राणापानयोः प्रतिघात उपलभ्यते
मन दो प्रकार का है - भाव मन और द्रव्यमन । लब्धि और उपयोग रूप भावमन चेतन पर्याय स्वरूप है । पुद्गलात्मक मनोवर्गणा के अवलंबन लेने से इसको कथंचित् पुद्गल रूप मानते हैं । ज्ञानावरण व वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम के निमित्त से जो प्राप्त होते हैं तथा गुण दोष के विचार करने में एवं स्मरण आदि के प्रणिधान के संमुख हुए आत्मा के जो अनुग्राहक हैं ऐसे पुद्गल वीर्य विशेष में समर्थ हुए मन स्वरूप परिणमन करते हैं अर्थात् मनोवर्गणा रूप पुद्गलद्रव्य द्रव्यमन रूप परिणत होता . है अतः द्रव्य मन पौद्गलिक है ही ।
अनुमान से भी यही बात सिद्ध होती है - द्रव्यमन पुद्गल का कार्य है [ पक्ष ] क्योंकि वह द्रव्यकरण - [ द्रव्येन्द्रिय ] होकर ज्ञान का साधन है [ हेतु ] जैसे चक्षु आदि द्रव्येन्द्रियां पुद्गल का कार्य होती हैं और ज्ञान का साधन होती हैं । युक्ति से भी द्रव्यमन पौद्गलिक सिद्ध होता है ।
वीर्यान्तराय और ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से तथा अंगोपांग नाम कर्म के उदय से आत्मा द्वारा कोठे की [ उदर की ] वायु बाहर निकाली जाती है वह उच्छवास नाम का प्राण है । तथा उसी आत्मा के द्वारा बाहर की वायु अंदर ली जाती है वह निःश्वास लक्षण वाला अपान है । ये दोनों ही आत्मा के जीवित का हेतु होने
अनुग्राहक हैं । मन, प्राण और अपान ये तीनों मूत्र्तिक हैं क्योंकि इनका प्रतिघात आदि देखा जाता है । प्रतिभव के कारण भूत बिजली वज्र आदि के शब्द से मन का प्रतिघात होता है, तथा उसका मदिरा आदि से अभिभव भी होता है । हस्त पाद आदि