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पंचमोऽध्यायः
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प्राकाशस्यावगाहः ॥१८॥ आकाशशब्दो व्याख्यातार्थः । अवगाहोऽनुप्रवेश इत्यर्थः । अवगाहशब्दस्तु भावसाधनोऽवगाहनमवगाह इति । असर्वगतद्रव्याणां परस्परमनुप्रवेशनक्रियायाः स्वयं कर्तृ भावमास्कन्दतां सर्वावकाश दानसमर्थाकाशे योऽवगाहः कार्यं तदाकाशस्यास्तित्वं साधयतीति समुदायार्थः । तथाहि-युगपत्सर्व द्रव्यावगाहः साधारणकारणापेक्षः सर्वसाधारणावगाहनत्वान्यथानुपपत्तः । यच्च बाह्यमप्रेरक साधारणकारणं तदाकाशमवबोद्धव्यम् । अथ मतमेतत्-मधुनि सर्पिषोऽवगाहो, भस्मनि जलस्यावगाहो, जले चाश्वादेरवगाहो यथा दृष्टस्तथैवालोकतमसोरशेषार्थावगाहघटनान्नास्मादाकाशं सिध्यतीति । तन्न युक्तिमत्-आलोकतमसोरपि नभसोऽसम्भवेऽवगाहानुपपत्त: । शब्दात्तद्गुणादाकाशसिद्धिर्भविष्यतीति
सूत्रार्थ-आकाश द्रव्य का उपकार सर्व द्रव्यों को अवगाह देना है।
आकाश शब्द का अर्थ बतला दिया है। अनुप्रवेश को अवगाह कहते हैं । अवगाह शब्द भाव साधन है अवगाहनं अवगाहः । परस्पर में अनुप्रवेश रूप क्रिया के कपिन को स्वयं प्राप्त होने वाले असर्वगत द्रव्यों का सर्व को अवकाश दान देने में समर्थ ऐसे आकाश में जो अवगाह रूप कार्य होता है वह अवगाह कार्य आकाश के अस्तित्व को सिद्ध करता है ऐसा समुदाय अर्थ जानना। आगे इसी को बतलाते हैं—एक साथ सर्व द्रव्यों का जो अवगाह देखा जाता है वह सर्व साधारण कारण की अपेक्षा रखता है [ प्रतिज्ञा ] क्योंकि अन्यथा सर्व साधारण अवगाह बन नहीं सकता [ हेतु ] यह जो बाह्य अप्रेरक साधारण कारण है वह आकाश है इसप्रकार अनुमान प्रमाण जानना चाहिये ।
शंका-मधु में [ शहद में ] घी का अवगाह जैसे देखा जाता है, अथवा जैसे राख में जल का अवगाह, जल में अश्वादि का अवगाह देखा जाता है वैसे प्रकाश और अंधकार में सम्पूर्ण पदार्थों का अवगाह होता है । इसलिये अवगाह की अन्यथानुपपत्ति रूप हेतु से आकाश द्रव्य की सिद्धि करना अयुक्त है ?
समाधान-यह बात असत् है, यदि आकाश नहीं होगा तो प्रकाश और अन्धकार का अवगाह भी नहीं हो सकता अथवा प्रकाश और अन्धकार में जो अवगाह देखा जाता है वह आकाश के बिना हो ही नहीं सकता।
शंका-आकाश की सिद्धि आकाश के शब्द नाम के गुण द्वारा होगी? .