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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती सङ्खय प्रतीयते । व्याख्यानादिष्टसप्रत्यये च गौरवं स्यादिति सुखप्रतिपत्त्यर्थमुपग्रहवचनं कृतम् । तत्रैव मुच्यत्ते-विवादापन्नाः सकलजीवपुद्गलाश्रयाः सकृद्गतयः साधारणबाह्याप्रेरकनिमित्तापेक्षा युगपद्भाविगतित्वादेकसर:सलिलाश्रयानेकमत्स्यादिगतिवत् । तथा सकलजीवपुद्गलस्थितयः साधारणबाह्याश्रपहेत्वपेक्षा युगपद्भाविस्थितित्वादेककुण्डाश्रय बदरादिस्थितिवत् । यत्तत्साधारणं बाह्य निमित्त स धर्मोऽधर्मश्चेति निश्चीयते । न चाकाशं साधारणं निमित्त तद्गतिस्थितीनां सर्वत्र भावादिति वक्तव्यं--- तस्यावकाशनिमित्तत्वेन वक्ष्यमाणत्वात् । अथैकमेवाकाशमनेककार्यनिमित्तं भविष्यतीत्युच्यते तद्य नेक सर्वगतकालादिद्रव्यपरिकल्पनमनर्थकतामियात् । योगपद्यादिप्रत्ययस्य कालकार्यस्य बुद्धयादेरात्म
यदि कहा जाय कि यह अर्थ व्याख्यान द्वारा सिद्ध हो जायगा सो भी बात नहीं है क्योंकि इसतरह तो बुद्धि में गौरव होगा [ समझने में कठिनाई ] अतः सुखपूर्वक अर्थ बोध कराने हेतु उपग्रह पद को सूत्र में लिया है । आगे अनुमान प्रमाण द्वारा धर्म अधर्म द्रव्य की सिद्धि करते हैं-विवाद में स्थित संपूर्ण जीव और पुद्गलों के आश्रय में एक साथ होने वाली गतियां साधारण बाह्य अप्रेरक कारण की अपेक्षा से ही होती हैं, [ प्रतिज्ञा ] क्योंकि एक साथ गति स्वरूप हैं [ हेतु ] जैसे एक सरोवर के जल के आश्रय में अनेक मत्स्यादि की गति एक साथ होने से एक साधारण बाह्य कारणभूत जल से होती है । तथा सकल जीव और पुद्गलों की स्थितियां साधारण बाह्य आश्रय भूत कारण की अपेक्षा से होती हैं [ प्रतिज्ञा ] क्योंकि एक साथ स्थिति रूप हैं [ हेतु ] जैसे एक कुण्डे के आश्रय में अनेक बेर आदि की स्थिति एक साथ होती है अत: वे कुण्डाश्रित ही माने जाते हैं । जो वह साधारण सा बाह्य निमित्तकारण या हेतु है वही धर्म और अधर्म द्रव्य है ऐसा निश्चय होता है।
शंका-जीव और पुद्गल के गति और स्थिति का साधारण निमित्त आकाश है, क्योंकि वह सर्वत्र पाया जाता है ?
___ समाधान-ऐसा नहीं कहना, आकाश तो अवकाश दान का निमित्त है, आगे इस बात को कहने वाले हैं ।
शंका-एक ही आकाश द्रव्य गति आदि सर्व कार्यों का निमित्त हो जायगा ?
समाधान–यदि शंकाकार इसतरह कहता है तो अनेक सर्वगत कालादि भिन्न भिन्न द्रव्यों की कल्पना करना व्यर्थ ठहरता है । आप परवादियों के मत में काल,