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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ
नात्येषां परस्परं प्रदेशविरोधः । तथा पारिणामिकाना दिसम्बन्धत्वाच्च तेषामन्योन्यप्रदेशाविरोधः सिद्धः । इदानीं पुद्गलानामवगाहन विशेषप्रतिपत्त्यर्थमाह
एकप्रदेशाविषु भाज्य: पुद्गलानाम् ।। १४ ।।
एकश्चासौ प्रदेशश्चैक प्रदेशः । स प्रदिर्येषां द्वित्रिचतुः सङ्खय' यासङ्ख्यं यानां प्रदेशानां ते एक प्रदेशादयो लोकाकाशस्य प्रदेशास्तेष्वेकप्रदेशादिष्ववयवेन विग्रहः समुदायः समासार्थस्तेनैकप्रदेशस्योपलक्षणभूतस्याप्यन्तर्भावो भवति । भाज्यो विकल्प्यो भजनीयः पृथक्कर्तव्यो विभाज्य इत्यनर्थान्तरम् । कः पुनरसावनुवर्तमानोऽवगाह : ? पुद्गलानामिति सामान्यनिर्देशादेकद्वित्रिचतुः संखय यासंखघळे यानन्तानां परमाणूनां द्वयणुकादिस्कन्धानां च ग्रहणम् । लोकाकाशे इत्यनुवर्तते । तस्यार्थवशात् षष्ठयन्त विपरिणामः । तद्यथा - लोकाकाशस्यैकस्मिन्न ेव प्रदेशे एकस्य परमाणोरवगाहः । द्वयोः परमाण्वोर्ब
एकत्र क्यों नहीं रह सकते ? अवश्य रह सकते हैं । इनके प्रदेशों में अमूर्तपना होने से परस्पर में विरोध नहीं आता । तथा इन धर्मादि का स्वाभाविक अनादि संबंध होने से परस्पर के प्रदेशों में अविरोध सिद्ध है ।
अब पुद्गलों का अवगाह विशेष बतलाते हैं—
सूत्रार्थ - पुद्गल द्रव्यों का अवगाह लोकाकाश के एक प्रदेश आदि में विभाजित है ।
एक प्रदेशादि पदों में कर्मधारय पूर्वक बहुब्रीहि समास है । एक, दो, तीन, संख्येय और असंख्येय लोकाकाश के प्रदेशों में पुद्गलों का अवस्थान है । "एक 'प्रदेशादिषु" पद का " अवयवेन विग्रहः समुदायः समासार्थ: " इस व्याकरण सूत्र के [ पातंजलि महाभाष्यके ] अनुसार समास करना जिससे उपलक्षण भूत एक प्रदेश का भी ग्रहण हो जाता है, अर्थात् एक प्रदेश में भी पुद्गल का अवस्थान है यह सिद्ध होता है | भाज्य विकल्प्य, भजनीय, पृथक् कर्तव्य और विभाज्य ये सब शब्द एकार्थवाची हैं । क्या भाज्य है ? तो अवगाह भाज्य है, क्योंकि अवगाह का प्रकरण चल रहा है । “पुद्गलानां” ऐसा सामान्य निर्देश करने से एक, दो, तीन, चार, संख्येय, असंख्येय और अनन्त परमाणु तथा द्वयणुक आदि स्कन्धों का ग्रहण हो जाता है । “लोकाकाशे” पद का अनुवर्त्तन चल रहा है उस पद की अर्थवश से षष्ठी विभक्ति रूप परिणमन करना । आगे इसी को बतलाते हैं - लोकाकाश के एक ही प्रदेश में एक परमाणु का