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पंचमोऽध्यायः
[ २६३ स्यान्मतं ते-यदि निष्क्रियाणि धर्मादीनि तदा सर्वद्रव्याणामुत्पादादित्रितयकल्पना नोपपद्यते क्रियापूर्वको हि पटादीनामुत्पादो विनाशश्च लोके दृष्ट इति । तन्न युक्त-क्रियानिमित्तोत्पादविनाशाभावेऽपि धर्मा दीनामन्यथा तदुपपत्तेः । तद्यथा-द्विविध उत्पादो विनाशश्च भवति-स्वनिमित्त परनिमित्तश्चेति । स्वनिमित्तस्तावदनन्तानामगुरुलघुगुणानां . सर्वज्ञवीतरागाप्तप्रणीतागमप्रामाण्यादभ्युपगम्यमानानां षट्स्थानपतितया वृद्धया हान्या च वर्तमानानां स्वभावादेषामुत्पादो व्ययश्च सम्भवति । परप्रत्ययोप्यश्वादिगतिस्थित्यवगाहनहेतुत्वात् क्षणे क्षणे तेषां भेदात्तद्ध'तुत्वमपि भिद्यत इति कृत्वा परप्रत्ययापेक्ष उत्पादो विनाशश्च व्यवह्रियते । अथ मतमेतद्धर्मादीनि स्वयं निष्क्रियाणि । ततः कथं जीवपुद्गलानां क्रियानिमित्तानि भवेयुः ? सक्रियाणि हि जलादीनि मत्स्यादीनां गत्यादिनिमित्तानि लोके दृष्टानीति ।
शंका-यदि धर्मादि द्रव्य निष्क्रिय हैं तो सर्व द्रव्यों में उत्पाद व्यय ध्रौव्य मानना सिद्ध नहीं होगा, क्योकि लोक में घटादि पदार्थों में क्रिया पूर्वक ही उत्पाद और विनाश देखा जाता है, भाव यह है कि सभी द्रव्यों में उत्पाद व्यय स्वीकार किया गया है और उत्पाद व्यय क्रिया के बिना हो नहीं सकते । अतः धर्मादि को निष्क्रिय मानना बनता नहीं ?
समाधान-यह कथन ठीक नहीं है । क्रिया के निमित्त से होने वाला उत्पाद व्यय धर्मादि द्रव्यों में नहीं होता किन्तु अन्य प्रकार का उत्पाद व्यय होता है। उसीको बताते हैं-उत्पाद और व्यय दो प्रकार का है स्वनिमित्तक और परनिमित्तक । सर्वज्ञ वीतराग आप्त भगवान द्वारा प्रणीत आगम की प्रमाणता से जो स्वीकार किये गये हैं ऐसे अनंत अगुरु लघु गुण हैं उन गुणों में षट् स्थान पतित वृद्धि और हानि प्रवृत्त होती है, यह जो वृद्धि हानि रूप होना है वह स्वभावतः है, यही उत्पाद व्यय इन धर्मादि द्रव्यों में होता है । पर निमित्तक उत्पाद व्यय भी इनमें होता है, कैसे सो बताते हैंगति स्थिति और अवगाह में परिणत अश्वादि को उनकी उक्त क्रिया में ये धर्मादिक निमित्त होते हैं । अश्वादि की गति स्थिति अवगाह में क्षण क्षण में भेद पड़ता है अतः धर्मादि में भी भेद होगा इस दृष्टि से धर्मादि में पर निमित्तक उत्पाद व्यय कहा जाता है।
शंका-ये धर्मादि द्रव्य स्वयं निष्क्रिय हैं अतः जीव और पुद्गलों की क्रिया में निमित्त कैसे हो सकते हैं ? स्वयं क्रियाशील ऐसे जलादि पदार्थ ही मत्स्यादि के गमनादि क्रिया में निमित्त होते हुए लोक में देखे जाते हैं ?