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________________ २६० ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ गम् । यद्यपि पुद्गलद्रव्यादनन्यद्रूपं तत्परिणामात् द्रव्यार्थादेशाद्वयतिरेकेणानुपलब्धेस्तथापि पर्याया किन विवक्षावशाद्रूपविनाशे पुद्गलावस्थानाद्धेतोरुत्पाद्यानुत्पाद्यत्वादिमदनादिमत्वान्वयव्यतिरेकरूपवाग्विज्ञानवृत्तिहेतुत्वादिभिश्च हेतुभिः कथञ्चिद्वयतिरेकोपपत्तेरिन उत्पत्तिर्न विरुध्यते । रूपं विद्यते येषां ते रूपिणः पुद्गलाः । अत्र बहुवचननिर्देशो भेदप्रतिपादनार्थः । भिन्ना हि पुद्गलाः परमाणुभेदात् स्कन्धभेदाच्च वक्ष्यन्ते । अत्राह - किं पुद्गलवद्धर्मादीन्यपि द्रव्याणि प्रत्येकं भिन्नान्याहोस्विन्न ेत्यत्रोच्यते - आश्राकाशादेकद्रव्याणि ॥ ६ ॥ ग्रहण भी हो जाता है । यद्यपि यह रूप पुद्गल द्रव्य से अभिन्न है, क्योंकि पुद्गल स्वयं उस स्वरूप ही है तथा द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा पुद्गल को छोड़कर उपलब्ध नहीं होता है, तथापि पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा कथंचित् पुद्गल से भिन्न है, क्योंकि रूपके विनाश होने पर भी पुद्गल स्थित रहता है ( किसी एक कृष्ण आदि रूप बदल जाने पर भी ) पुद्गल द्रव्य और उसका रूप गुण इनमें कथंचित् व्यतिरेक - पृथक्पना निम्न तुओं से सिद्ध होता है । पुद्गल अनुत्पाद्य है और रूप उत्पाद्य है । पुद्गल अनादिमत् है और रूप सादिमत् है । पुद्गल द्रव्य अन्वय रूप रहता है और रूपविशेष व्यतिरेक स्वरूप । रूप शब्द से रूप का ज्ञान और रूप में प्रवृत्ति होती है । इसतरह कथंचित् भिन्नता के कारण रूप शब्द से इन् प्रत्यय आना विरुद्ध नहीं पड़ता । जिनके रूप विद्यमान हैं वे रूपी पुद्गल हैं । "रूपिणः" ऐसा बहुवचन इनके भेदों को बतलाने के लिये है । पुद्गल परमाणु और स्कन्ध के भेद से विभिन्न प्रकार के होते हैं ऐसा आगे कहेंगे । शंका - पुद्गल के समान धर्मादि द्रव्यों के प्रत्येक के भेद होते हैं अथवा नहीं होते ? समाधान - अब इसीका सूत्र द्वारा प्रतिपादन करते हैं सूत्रार्थ - आकाश तक के द्रव्य एक एक हैं ।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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