________________
चतुर्थोऽध्यायः
[ २४५ अष्टभिर्भागोऽष्टभागः । तस्य पल्योपमस्याष्टभागस्तदष्टभागः । किमुक्त भवति ? पल्योपमस्याष्टमो भागो ज्योतिष्काणां जघन्या स्थितिरित्येतदुक्त भवतीति । अत्र कश्चिदाह-ज्योतिष्काणां परा स्थितिः पल्योपममधिकमित्युक्तम् । तच्चाधिकं कस्य कियदिति न ज्ञायते इत्यत्रोच्यते-चन्द्राणां वर्षशतसहस्राधिकं पल्योपमं परा स्थितिः। सूर्याणां वर्षसहस्राधिकं पल्यं परा स्थितिः । शुक्राणां वर्ष शताधिकं पल्यं परा स्थितिः । बृहस्पतीनां पूर्ण पल्योपममेव परा स्थिति धिकम् । शेषाणां ग्रहाणां बुधादीनां पल्योपमस्याधं परा स्थितिः । नक्षत्राणां पल्यार्धं परा स्थितिः । तारकाणां पल्योपमस्य चतुर्थो भागः परा स्थितिः । तथा तारकाणां नक्षत्राणां च पल्यस्याष्टमो भागो जघन्या स्थितिर्भवति । सूर्यादीनां तु पल्योपमस्य चतुर्थो भागो जघन्या स्थितिर्वेदितव्येति । अथ लौकान्तिकानां कियानित्याह
लौकान्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम् ॥ ४२ ॥
एक पल्य के बराबर आठ भाग करना उनमें से आठवां भाग लेना, इससे क्या कहा ? सो बताते हैं-ज्योतिष्क देवों की जघन्य स्थिति पल्योपम के अष्टम भाग प्रमाण है ऐसा समझना चाहिये ।
यहां पर कोई कहता है-ज्योतिष्क देवों की प्रकृष्ट स्थिति कुछ अधिक एक पल्य की बतायी, वह जो कुछ अधिक है वह किसके कितनी अधिक है यह ज्ञात नहीं होता है ?
अब इस शंका का समाधान करते हैं-चन्द्र देवों की उत्कृष्ट स्थिति-आयु एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम है । सूर्य देवों की हजार वर्ष अधिक पल्योपम है । शुक्रों की सौ वर्ष अधिक पल्य प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। बृहस्पतियों की पूर्ण पल्य प्रमाण ही है इससे अधिक नहीं हैं । शेष बुध आदि ग्रहों की तथा नक्षत्रों की उत्कृष्ट आयु आधा पल्य की है । तारकाओं की उत्कृष्ट आयु पल्य के चौथे भाग प्रमाण है । नक्षत्र तथा ताराओं की जघन्य स्थिति पल्य के आठवें भाग प्रमाण है । सूर्य आदि की जघन्य स्थिति पल्य के चौथाई भाग प्रमाण है ऐसा जानना चाहिये।
अब लौकान्तिक देवों की कितनी स्थिति है यह बतलाते हैंसूत्रार्थ-सभी लौकान्तिकों की स्थिति आठ सागर प्रमाण कही है।