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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती भिसम्बन्धो द्रष्टव्यः । सप्त त्रिभिरधिकानि, सप्त सप्तभिरधिकानीत्यादि । तुशब्दोऽत्र विशेषणार्थो द्रष्टव्यः । किमनेन विशिष्यते ? अधिकशब्दोनुवर्तमानश्चतुभिः कल्पयुगलैरिह सम्बध्यते नोत्तराभ्या मित्ययमर्थो विशिष्यते । तेनायमर्थो भवति-ब्रह्मलोकब्रह्मोत्तरयोर्देवानां दशसागरोपमाणि साधिकान्युत्कृष्टा स्थितिः । लान्तवकापिष्ठयोश्चतुर्दशसागरोपमाणि साधिकानि । शुक्रमहाशुक्रयोः षोडशसागरो पमाणि साधिकानि । शतारसहस्रारयोरष्टादशसागरोपमाणि साधिकानि। आनतप्राणतयोविंशतिसागरोपमाणि । आरणाच्युतयोविंशतिरेव सागरोपमारणीति । सांप्रतं सौधर्मादिषु देवीनां प्रतिकल्पं परमायुः प्रमाणमुच्यते-सौधर्मदेवीनां पञ्चपल्योपमानि । ईशानदेवीनां सप्तपल्योपमानि । सानत्कुमार देवीनां नवपल्योपमानि। माहेन्द्र' एकादशपल्यानि । ब्रह्मलोके त्रयोदशपल्यानि । ब्रह्मोत्तरे पञ्चदश पल्यानि । लान्तवे सप्तदशपल्यानि । कापिष्ठे एकोनविंशतिपल्यानि । शुक्रे एकविंशतिपल्यानि । महा शुक्र त्रयोविंशतिपल्यानि । शतारे पञ्चविंशतिपल्यानि । सहस्रारे सप्तविंशतिपल्यानि । पानते
त्रि आदि पदों में द्वन्द्व समास करना, सात शब्द का अधिकार है, उस सात के साथ यहां के तीन आदि संख्या का दो दो कल्पों में संबंध जानना चाहिये सात तीन से अधिक है, सात, सात से अधिक है इत्यादि । यहां पर तु शब्द विशेष अर्थ की सूचना करता है।
प्रश्न-इस तु शब्द से क्या विशेष सूचना मिलती है ?
उत्तर-अधिक शब्द का प्रवर्तन यहां चार युगलों तक संबद्ध है आगे के दो युगलों में अधिक का अधिकार नहीं है, यह अर्थ तु शब्द से सूचित होता है। उससे यह अर्थ होता है कि ब्रह्मलोक और ब्रह्मोत्तर के देवों की कुछ अधिक दश सागर की उत्कृष्ट आयु है, लांतव कापिष्ठ में चौदह सागर से कुछ अधिक शुक्र महाशुक्र में सोलह सागर से कुछ अधिक शतार सहस्रार में अठारह सागर से कुछ अधिक उत्कृष्ट आयु है । बस ! यहीं तक अधिक का प्रकरण है । आनत प्राणत में बीस सागरोपम और आरण अच्युत में बावीस सागर प्रमाण उत्कृष्ट आयु होती है।
अब यहां पर सौधर्म आदि में होने वाली देवियों की प्रत्येक कल्प की अपेक्षा उत्कृष्ट आयु बताते हैं—सौधर्म स्वर्ग के देवियों की आयु पांच पत्य की है। ईशान के देवियों की सात पल्य की, सानत्कुमार के देवियों की नौ पल्य, माहेन्द्र के देवियों की ग्यारह पल्य, ब्रह्मलोक में तेरह पल्य, ब्रह्मोत्तर में पंद्रह पल्य, लान्तव में सतरह पल्य कापिष्ठ में उन्नीस पल्य, शुक्र में इक्कीस पल्य, महाशुक्र में तेईस पल्य, शतार में