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चतुर्थोऽध्यायः
[ २३५ एषां स्थितिरियमुत्कृष्ट ति गम्यते जघन्याया उत्तरत्र वक्ष्यमाणत्वात् । असुराश्च नागाश्च सुपर्णाश्च द्वीपाश्च शेषाश्च-असुरनागसुपर्णद्वीपशेषास्तेषामसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणाम् । त्रीणि च तानि पल्योपमानि च त्रिपल्योपमानि । अर्धन हीनं पल्यमर्धहीनमिति खण्डसमासः। ततः सागरोपमं च त्रिपल्योपमानि चार्धहीनं च सागरोपमत्रिपल्योपमार्धहीनानि । तैर्मिता परिच्छिन्ना सागरोपमत्रिपल्योपमा हीनमिता । ततो यथाक्रममभिसम्बन्धः क्रियते । तद्यथा-असुराणां सागरोपममितोत्कृष्टा स्थितिः । नागानां त्रिपल्योपममिता। सुपर्णानां ततोऽर्धहीनमिता-अर्धपल्यद्वयप्रमितेत्यर्थः । द्वीपानां ततोप्यर्धहीनमिता–पल्यद्वयप्रमाणेत्यर्थः । शेषाणां षण्णां ततोप्यर्धहीनमिता–प्रत्येकमध्यर्धपल्योपमा चेति तात्पर्यार्थः । असुराणां देहोत्सेधस्य मानं पंचविंशतिधषि । नागादीनां तु नवानामपि देहोत्सेधस्य मानं दशधनूषि । सर्वव्यन्तराणां देहोत्सेधस्य प्रमाणं दशधनूषि । सर्वज्योतिषां शरीरोत्सेधस्य प्रमाणं सप्तधनूषीति चात्र वेदितव्यम् । तथा चोक्तम्
पणवीसं असुराणं सेसकुमाराणं दसधणू चेव । वेन्तरजोयिसियाणं दस सत्त सरीर उच्छेहो ।
सागरोपम आदि स्थिति इन देवों की उत्कृष्ट है ऐसा जाना जाता है क्योंकि जघन्य स्थिति को आगे कहेंगे । असुर आदि पदों में द्वन्द्व समास है । त्रिपल्योपम पद में कर्मधारय समास है, अर्धहीन पद में तत्पुरुष खंड समास है, पुनः इन संख्यावाची पदों का द्वन्द्व समास करके तत्पुरुष समास द्वारा 'मित' पद जोड़ दिया है । फिर इनका क्रमसे संबंध करना, आगे इसीको बतलाते हैं असुरकुमारों की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है । नागकुमारों की तीन पल्य की सुपर्णकुमारों की उससे अर्ध पल्य कम है अर्थात् ढाई पल्य स्थिति है । द्वीप कुमारों की उससे आधा पल्य कम अर्थात् दो पल्य आयु है । शेष छह कुमारों की आधा पल्य कम आयु है अर्थात् प्रत्येक कुमारों की स्थिति डेढ पल्य की है ।
असुरकुमारों की शरीर की ऊंचाई पच्चीस धनुष की है। नागकुमारादि शेष नौ की ऊँचाई दस धनुष है। सभी व्यन्तर देवों के शरीर दस धनुष ऊचे हैं। सभी ज्योतिष्क देवों के शरीर सात धनुष प्रमाण हैं ऐसा जानना चाहिये । कहा भी है
असुरों की शरीर ऊंचाई पच्चीस धनुष, शेष नौ कुमार तथा सभी व्यन्तरों के शरीरों की ऊंचाई दस धनुष प्रमाण है और सर्व ज्योतिषी के सात धनष प्रमाण शरीर की ऊंचाई होती है ॥१॥